Monday, April 21, 2025

प्रसंगवश - शब्द की शक्ति - सृष्टि से भक्ति

 प्रसंगवश - 

शब्द की शक्ति - सृष्टि से भक्ति

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प्रतीकात्मक चित्र - साभार NightCafe 

शब्द केवल ध्वनि नहीं, बल्कि सृष्टि का मूल और जीवन का प्रेरक है। वैदिक दर्शन और आधुनिक विज्ञान दोनों ही शब्द की उत्पत्ति को ब्रह्मांड के प्रारंभ से जोड़ते हैं। यह आलेख शब्द की शक्ति को वैदिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है।


वैदिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में केवल 'तत्' (ब्रह्म) था। यह ब्रह्म निराकार और निर्गुण था। शब्द की उत्पत्ति ब्रह्म के साथ हुई, जो सृष्टि का आधार बना। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है, "शब्द ही ब्रह्म है।"  विज्ञान के अनुसार, 13.8 अरब वर्ष पहले बिग बैंग ने ब्रह्मांड को जन्म दिया। इस विस्फोट के साथ अंतरिक्ष, समय और ऊर्जा का निर्माण हुआ। प्रारंभिक ब्रह्मांड में ध्वनि तरंगों ने कणों को आकार दिया, जो शब्द की वैदिक अवधारणा से साम्य रखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बिग बैंग के बाद उत्पन्न ध्वनि तरंगें (कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड) ने ब्रह्मांड के प्रारंभिक ढांचे को आकार दिया, जो वैदिक शब्द की सृजनात्मक शक्ति से मिलता-जुलता है। इस प्रकार, वैदिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण शब्द को सृष्टि का मूल मानते हैं, जो हमारे जीवन में भी गहरा प्रभाव डालता है।


शब्द कानों से हृदय तक पहुँचता है। सोते हुए व्यक्ति को नाम से पुकारकर जगाने की शक्ति शब्द में निहित है। यह अज्ञान को दूर कर चेतना को जागृत करता है। इसी तरह, सकारात्मक शब्द, जैसे भक्ति भरे भजन या प्रेरक भाषण, जीवन को बदल सकते हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के प्रेरणादायी शब्दों ने लाखों लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरित किया। वैदिक मंत्रों (जैसे, गायत्री मंत्र) का उच्चारण मन और आत्मा को शुद्ध करने के साथ शांति देता है। रामचरितमानस और गीता के शब्द हमें आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाते हैं, जिससे मन और आत्मा शुद्ध होते हैं। साहित्यकारों के शब्द समाज को गहराई से प्रभावित करते हैं। वे समाज का प्रतिबिंब होने के साथ-साथ इसे आकार देते हैं, नए विचार जन्म देते हैं, और रूढ़ियों को चुनौती देते हैं। उदाहरण के तौर पर, कबीर के दोहे आज भी हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। यदि शब्दों में अपशब्द या नकारात्मक भाषा का उपयोग हो तो यह मानसिक और सामाजिक नुकसान भी कर सकता है। उदाहरण के लिए, अपशब्द या नकारात्मक भाषा तनाव, वैमनस्य और सामाजिक दूरी को बढ़ा सकती है।


हमें शब्द की शक्ति के सकारात्मक इस पहलू पर ध्यान देना चाहिए कि यदि हम भगवान् की भक्ति स्वरूप भगवान् के विषय में सुने तो भगवान् की असीम कृपा हम पर बरसेगी। सकारात्मक शब्द (जैसे प्रेरणादायक भाषण या दयालु बातें) भी हमारे जीवन में बदलाव ला सकते हैं। शब्द केवल ध्वनि नहीं, बल्कि सृष्टि की शक्ति है। इसका सकारात्मक उपयोग हमें न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करता है, बल्कि समाज और संसार को भी बेहतर बनाता है। शब्द ब्रह्मांड की ध्वनि और जीवन की प्रेरणा है। भगवान की भक्ति में शब्द का उपयोग हमें उनकी कृपा का पात्र बनाता है। आइए, अपने शब्दों को प्रेम, सत्य और भक्ति का माध्यम बनाएँ, ताकि हम एक बेहतर संसार का निर्माण करें।


सादर,

केशव राम सिंघल 

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