Thursday, July 1, 2021

#085 - गीता अध्ययन एक प्रयास

 

गीता अध्ययन एक प्रयास

 

*ॐ*

*जय श्रीकृष्ण*

 

*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*

 

8/17

 

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।

रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।

 

*भावार्थ*

 

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -

जो व्यक्ति ब्रह्माजी के एक हजार चतुर्युग वाले एक दिन और एक हजार चतुर्युग वाली एक रात्रि को जानता है, वह व्यक्ति ब्रह्माजी के दिन और रात (अर्थात देवता-काल तत्व) को जानते हैं।

 

*प्रसंगवश*

 

हमें यह समझना चाहिए कि हमारे समय का परिमाण देवताओं के समय के परिमाण से अलग है। देवताओं के समय का परिमाण हमारे समय के परिमाण से लगभग तीन सौ साठ गुना माना जाता है। हमारा एक वर्ष देवताओं का एक दिन-रात के बराबर होता है। इसे हम इस प्रकार कह सकते हैं –

 

हमारा एक वर्ष = देवताओं का एक दिन-रात

हमारे तीस वर्ष = देवताओं का एक महीना

हमारे 360 वर्ष = देवताओं का एक वर्ष = 1 दिव्य वर्ष

 

कलियुग = 1,200 दिव्य वर्ष = 4,32,000 वर्ष

द्वापरयुग = 2,400 दिव्य वर्ष = 8,64,000 वर्ष

त्रेतायुग = 3,600 दिव्य वर्ष = 12,96,000 वर्ष

सतयुग = 4,800 दिव्य वर्ष = 17,28,000 वर्ष

 

एक दिव्य युग = कलियुग + द्वापरयुग + त्रेतायुग + सतयुग

 

हमारे 43,20,000 वर्ष = 12,000 दिव्य वर्ष = एक दिव्य युग  = एक महायुग = एक चतुर्युग (दिव्य युग को महायुग और चतुर्युग भी कहा जाता है। )

 

1 दिव्य युग = ब्रह्माजी का एक दिन

ब्रह्मा जी की रात्रि अवधि भी इतनी होती है।

ब्रह्माजी का दिन 'कल्प' या 'सर्ग' कहलाता है।

ब्रह्माजी की रात्रि 'प्रलय' कहलाती है। 

 

उपर्युक्त काल-गणना से हमें यह ज्ञान होता है कि मनुष्य जीवन अवधि बहुत ही कम है।

 

सादर,

केशव राम सिंघल