गीता अध्ययन एक प्रयास
ॐ
जय श्रीकृष्ण 🙏
गीता अध्याय 10 - भगवान् की महिमा
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प्रतीकात्मक चित्र भगवान् श्रीकृष्ण - साभार NightCafe
10 / 26
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।
10 / 27
उच्चैः श्रवसमश्वानांविद्धि माममृतोद्भवम्।
एरावतं गजेन्द्राणा नराणां च नराधिपम्।।
10 / 28
आयुधानामहं वज्रं धेनुनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।।
10 / 29
अनन्ताश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।
10 / 30
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कल्यत्यामहम्।
मृगाणां च म्रगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।
10 / 31
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।
10 / 32
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्।।
10 /33
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः।।
10 / 34
मृत्युः सर्वहारश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।
भावार्थ
भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
मैं सभी वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल का वृक्ष) तथा देवताओं और ऋषियों में नारद, गंधर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में ऋषि कपिल हूँ। समुद्र मंथन से उत्पन्न अश्वों में मुझे उच्चैःश्रवा अश्व जानो, हाथियों में मैं ऐरावत हूँ और मनुष्यों में राजा हूँ। शस्त्रों में मैं वज्र हूँ और गौओं में कामधेनु हूँ। संतान उत्पत्ति के लिए मैं ही प्रेम का देवता कामदेव और सर्पो में वासुकि हूँ। अनेक फनों वाले नागों में मई अनन्त (शेषनाग) हूँ और जलचरों में वरुण हूँ। मैं पितरों में अर्यमा नामक पितृ हूँ और समस्त नियमन के निर्वाहकों में मैं मृत्यु का नियामक यम हूँ। मैं ही दैत्यों (असुरों) में प्रह्लाद हूँ, और गणना करने वालों का समय (काल) हूँ। मैं पशुओं में सिंह (शेर) और पक्षियों में वैनतेय (गरुड़) हूँ। मैं पवित्र करने वालों में वायु हूँ और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। मछलियों में मैं मगर हूँ; मैं नदियों में जाह्नवी (गंगा) हूँ। हे अर्जुन, मैं ही समस्त सृष्टि का आदि, अन्त और मध्य हूँ।
समस्त विद्याओं में आध्यात्मिक ज्ञान हूँ, और तर्कों में निर्णय हूँ। मैं अक्षरों में अकार (ओङ्कार) और समासों में द्वंद्व समास हूँ। मैं ही अक्षय काल हूँ, सृष्टिकर्ता (ब्रह्मा), सर्वव्यापी हूँ। मैं सबकी पराजय मृत्यु हूँ, तथा भविष्य का पुनरुत्थान (उत्पन्न करने वाला) हूँ। स्त्रियों में प्रसिद्धि, सुन्दरता, वाणी, स्मृति, बुद्धि, धैर्य और क्षमा हूँ।
प्रसंगवश
इन श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण अपनी महिमा को प्रकट करते हुए कहते हैं कि वे सभी चीजों में सर्वोच्च या अद्वितीय रूप में विद्यमान हैं, जैसे - (1) प्रकृति में - पीपल वृक्ष, गंगा नदी, वायु, सिंह, गरुड़, मकर, (2) देवताओं और प्राणियों में - नारद, कपिल मुनि, चित्ररथ, वासुकि, शेषनाग, वरुण, यम, प्रह्लाद, (3) मानव और सामाजिक क्षेत्र में - राजा, श्रीराम, कामदेव, (4) आध्यात्मिक और बौद्धिक क्षेत्र में - आध्यात्मिक ज्ञान, ओङ्कार, द्वंद्व समास, मृत्यु, काल, सृष्टिकर्ता, (5) स्त्रियों के गुणों में: कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति, क्षमा।
इन श्लोकों के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण यह संदेश दे रहे हैं कि वे सृष्टि के प्रत्येक पहलू में, चाहे वह प्रकृति, प्राणी, गुण, या समय हो, सर्वत्र व्याप्त हैं। यह अर्जुन को यह समझाने के लिए है कि ईश्वर केवल एक सीमित रूप में नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि में उनकी उपस्थिति है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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