Thursday, November 9, 2023

मन और बुद्धि - 1



=======

मन और बुद्धि - 1

=======

हमारा मन इन्द्रिय मन है, हमारी इन्द्रियों से जुड़ा है और हमारे कारण-शरीर से भी जुड़ा है। इस मन में दो प्रकार की कामनाएँ पैदा होती रहती हैं, पहली - भीतर की कामना, जो स्वतः उठती है, और दूसरी - बाहर की कामना, जो व्यक्ति की स्वयं की होती है। गुरुग्राम के दास कृष्णा कहते हैं - "मन की स्थिति हवाई जहाज की होती है जो संसार से उठने वाले विचारों या वायु की तरंगों को चीरता हुआ अपने लक्ष्य की ओर जाता है। हवाई जहाज या मन के इस पथ या मार्ग पर चलने को ही जीवन यात्रा कहते हैं। आत्मा इस मन रूपी हवाई जहाज का पायलट है और बुद्धि उसका दिशा सूचक यंत्र।"


भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था - "पृथ्वी-जल-तेज-वायु-आकाश (पंचमहाभूत), मन-बुद्धि और अहंकार, ये आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी अपरा (परिवर्तनशील) प्रकृति है। हे महाबाहो (अर्जुन), इस अपरा (परिवर्तनशील) प्रकृति से भिन्न मेरी जीवरूपा परा (अपरिवर्तनशील) प्रकृति को जान, जिसने (जिसके द्वारा) यह जगत धारण किया (बनाया और रखा) जाता है।"


मन और बुद्धि परस्पर संवाद करते रहते हैं। मन अपनी मर्जी का मालिक होता है और स्वभाव से चंचल। बुद्धि में अहंकार होता है। मन और बुद्धि की यह तामसिक दशा है। सात्त्विक दशा में मन निर्मल और बुद्धि प्रज्ञा (ज्ञान या wisdom के स्रोत) के रूप में जान पड़ते हैं।


बुद्धि का सहज गुण स्थिरता है। यह मन की तरह चंचल नहीं होता। बुद्धि का सम्बन्ध सूर्य से और मन का सम्बन्ध चन्द्रमा से है। दैहिक मन (सोमात्मक मन) जब सौर बुद्धि (Solar mind) से जुड़ता है तो यह (मन) आसक्तिरहित हो जाता है।


आत्मा मन-प्राण-शरीर के साथ रहता है। मन अस्तित्व के साथ जुड़ा रहता है। मन आत्मा के साथ जुड़ा है। प्राण जीवन का गतिमान तत्व है। ये तीनों ही जीने के साधन हैं, जिनका उपयोग आत्मा करता है। प्राण के माध्यम से आत्मा और मन शरीर से जुड़ा है।


शरीर तीन होते हैं - स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर। मन भी तीन होते हैं - इन्द्रिय मन, सर्वेन्द्रिय मन और महन्मन।


ॐ तत् सत्।


शेष फिर ,,,,,,,,,


केशव राम सिंघल

सादर साभार - दास कृष्ण, गीता पर रामसुखदास जी की पुस्तक और गुलाब कोठारी (राजस्थान पत्रिका) लेख