Sunday, April 13, 2025

#099 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 

जय श्रीकृष्ण 🙏

गीता अध्याय 9 - ज्ञान विज्ञान 













9 /34 

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। 

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।। 


भावार्थ 


भगवान् श्रीकृष्ण  अर्जुन से कहते हैं - 


अपने मन में मुझे याद करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो। इस प्रकार मुझ में समर्पित होकर और मुझ से एकाकार होकर, तू मुझे ही प्राप्त होगा।


प्रसंगवश 


श्लोक 9 /34 गीता अध्याय 9 का अंतिम श्लोक है। गीता का यह श्लोक भक्ति और समर्पण का गहन संदेश देता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि मन, भक्ति, पूजा और समर्पण के माध्यम से भगवान के साथ एकाकार होने से मोक्ष संभव है। इस श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण के ज्ञान का तात्पर्य है कि केवल भगवान् के साथ सम्बन्ध जोड़ो ताकि कल्याण (मोक्ष) हो सके। यह हमारा दुर्भाग्य है या अज्ञानता कि हम परिवर्तनशील अपरा भौतिक जगत में बँध जाते हैं और सत्यता का अनुभव नहीं करते। हम अपने शरीर के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ लेते हैं और हमें शरीर का सुख-दुःख अपना सुख-दुःख लगता है। हमें शरीर से अलग अपने अस्तित्व का भान नहीं होता, यही हमारी अज्ञानता है। हमारी अज्ञानता हमें शरीर और भौतिक जगत से बांधती है, जबकि सत्य हमारा आत्मिक अस्तित्व है।


नवे अध्याय का सार 


सम्पूर्ण प्राणियों और इस जगत को उत्पन्न करने वाले भगवान् ही हैं। परा और अपरा प्रकृति भगवान् के नियंत्रण में है। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन (आश्रित) हैं और प्रकृति भगवान् के  अधीन (आश्रित) है। इस प्रकार हम सभी भगवान् के अधीन (आश्रित) हैं और हमें मोक्ष पाने के लिए अर्थात् जन्म-मरण चक्र से छूटने के लिए भगवान् की आराधना करने की जरुरत है, जिसमें भाव की प्रधानता है, न कि नियमों या विधियों की। यह संदेश कितना सरल और गहरा है कि नियमों से अधिक भाव की प्रधानता है। आइए, हम सब मिलकर भगवान का धन्यवाद करें और उनके प्रति अपनी भक्ति को और गहरा करें।  


सादर,

केशव राम सिंघल 


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