Monday, April 21, 2025

#103 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 
जय श्रीकृष्ण 🙏

गीता अध्याय 10 - भगवान् की महिमा 





















10 / 19 
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः। 
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे।। 

10 / 20 
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। 
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।। 

10 / 21 
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्। 
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।। 

भावार्थ 

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - 

ओह, मैं तुम्हें आत्मा की दिव्य महिमा के बारे में बताऊँगा। हे कुरुश्रेष्ठ (अर्जुन), मेरी प्राथमिकताओं के विषय में मेरे विवरण का कोई अंत नहीं है। हे गुडाकेश (निद्रा पर विजय पाने वाले अर्जुन), मैं सभी प्राणियों के हृदय में निवास करने वाला आत्मा हूँ। मैं ही सभी प्राणियों का आदि (उद्गम), मध्य और अन्त हूँ। मैं सूर्यों (आदित्यों, अदिति के पुत्रों) में विष्णु हूँ, तथा प्रकाश किरणों वाला सूर्य हूँ। मैं मरुतों में मरीचि हूँ; मैं तारों का अधिपति चन्द्रमा हूँ। 

प्रसंगवश 

भगवान् की महानता, वैभव और ऐश्वर्य को समझ पाना हमारे लिए संभव नहीं है। हम जीव हैं और हमारी इन्द्रियाँ सीमित हैं। भगवान का स्वरूप अनंत और सर्वव्यापी है। वे सृष्टि के प्रत्येक कण में, प्रत्येक शक्ति और प्राकृतिक तत्व में विद्यमान हैं। यह समझ हमको अपनी सीमितता को पार कर ईश्वर की महानता के प्रति श्रद्धा और समर्पण की ओर ले जाती है।

अब हम आदित्यो और मरुतों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जब असुरों ने देवताओं पर आक्रमण किया था, उस समय आदित्यों ने देवताओं की रक्षा की थी। आदित्य देवी अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र थे, जिनकी संख्या बारह है। इन्हें द्वादश आदित्य कहा जाता है। ये बारह पुत्र सूर्य के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये बारह आदित्य हैं - (1) विष्णु, (2) धाता, (3) मित्र, (4) अर्यमा, (5) शक्र, (6) वरुण, (7) अंश, (8) भग, (9) विवस्वान, (10) पूषा, (11) सविता, और (12) त्वष्टा। विष्णु आदित्यों में विशिष्ट और सर्वोच्च हैं और वे विश्व के पालनकर्ता हैं। प्रत्येक माह सूर्य का एक विशिष्ट रूप पूजा जाता है। 

अब हम मरुतों के बारे में जानेंगे। मरुत वायु के देवता हैं और इंद्र के सहयोगी माने जाते हैं। ये देवी दिति और ऋषि कश्यप के पुत्र थे। इनकी संख्या उनचास थी, जो सात समूहों में बँटे हुए थे। प्रत्येक समूह में सात मरुत थे। मरीचि को सभी मरुतों का प्रमुख माना जाता था।  कहा जाता है कि जब दिति गर्भवती थीं, तब इंद्र ने उनके गर्भ को सात भागों में विभक्त कर दिया था और प्रत्येक भाग से सात मरुत उत्पन्न हुए, इस प्रकार इनकी संख्या उनचास हुई। मरुत इंद्र की सेना के भाग हैं और उन्हें वायु, तूफ़ान और प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक माना जाता है। वे शक्तिशाली, तेजस्वी और युद्धप्रिय हैं। वे वर्षा लाने और प्रकृति को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

सार रूप में हम कह सकते हैं कि आदित्य सूर्य के रूप और देवताओं के रक्षक हैं और मरुत वायु और तूफ़ान के देवता हैं, जो प्रकृति की गतिशीलता को नियंत्रित करते हैं। आदित्य और मरुत दोनों ही ब्रह्माण्ड के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  

दिति - असुरों की माता 
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 कश्यप की दूसरी पत्नी दिति से दानवों (असुरों) का जन्म हुआ, जैसे हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। अदिति की संतानें (देवता) और दिति की संतानें (दानव) परस्पर विरोधी थीं। ,,,,,,,,,, एक कथा में, दिति ने गर्भ में शक्तिशाली पुत्रों को जन्म देने की इच्छा की, जो इंद्र से भी बलशाली हों। इंद्र ने दिति के गर्भ को सात भागों में विभक्त कर दिया, जिससे मरुत (वायु के देवता) उत्पन्न हुए। दिति ने दानवों और देवों दोनों को उत्पन्न किया। 
 
इस सन्दर्भ में निम्न जानकारी पता चलती है - 

- दिति ने दानवों (हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष आदि) और मरुतों (वायु के देवता) दोनों को जन्म दिया।
- दानव दिति की सामान्य संतानें थीं, जो असुर-स्वभाव की थीं।
- मरुत एक अपवाद थे, जो इंद्र के हस्तक्षेप के कारण देवता बने और इंद्र के सहयोगी रहे।

इस प्रकार, दिति की संतानें संदर्भ और परिस्थितियों के आधार पर देव और दानव दोनों ही थे, लेकिन उनकी प्राथमिक भूमिका असुरों की माता के रूप में रही।

सादर,
केशव राम सिंघल 

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