गीता अध्ययन एक प्रयास
ॐ
जय श्रीकृष्ण 🙏
गीता अध्याय 10 - भगवान् की महिमा
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वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चस्मि भूतानामस्मि चेतना।।
10 / 23
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।
10 / 24
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ ब्रहस्पतिम्।
सेनानीना स्कन्दः सरसामास्मि सागरः।।
10 / 25
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।
भावार्थ
भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
वेदों में मैं सामवेद हूँ; देवताओं में मैं वासव (इंद्र) हूँ, मैं इन्द्रियों में मन हूँ और प्राणियों (जीवों) की चेतना (प्राण-शक्ति, ज्ञान-शक्ति) हूँ। मैं रुद्रों में शंकर हूँ, तथा यक्ष-राक्षसों में धन का स्वामी हूँ। मैं वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरों में सुमेरु पर्वत हूँ। हे पार्थ (अर्जुन), तू मुझे पुरोहितों में प्रधान ब्रह्मा जान। मैं सेनापतियों में स्कन्द (कार्तिकेय) हूँ और मैं जलाशयों में सागर हूँ। मैं महिर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर (ओङ्कार) हूँ। सभी प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वाला हिमालय मैं हूँ।
प्रसंगवश
वेद, दुनिया के सबसे प्राचीन लिखित धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं, जिन्हें संस्कृत में "विद्" (ज्ञान) शब्द से लिया गया है। वेद हिंदू धर्म के मूल हैं और ये चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों में सामवेद की प्रधानता है, तथा यह ग्रन्थ भगवान् की मधुर संगीतमय स्तुतियों से भरा पड़ा है। सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु आदि जितने भी देवता हैं, उनमें वासव (इंद्र) प्रमुख हैं। मन अन्य दस इन्द्रियों (आँख, कान, त्वचा, जीभ, नाक, वाक्, हाथ, पैर, उपस्थ और गुदा) का स्वामी और प्रेरक है। ग्यारह रूद्र बताए जाते हैं - हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित वृषाकपि, शम्भु (शंकर), कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली। आठ वसु बताए जाते हैं - धर, ध्रुव, सोम, अहः, अनिल, अनल (अग्नि), प्रत्यूष, और प्रभास। सुमेरु पर्वत को नक्षत्र और दीपों का केंद्र तथा सुवर्ण और रत्नों का भण्डार माना जाता है, इस प्रकार इसे अन्य पर्वतों से श्रेष्ठ माना जाता है।
स्कंद (कार्तिकेय) एक प्रमुख हिंदू देवता हैं, जिन्हें युद्ध और विजय का देवता माना जाता है। ये भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं और गणेश के भाई हैं। इन्हें देवताओं के सेनापति के रूप में भी जाना जाता है। जपयज्ञ की सादगी और शक्ति भगवान की सर्वसुलभ भक्ति को रेखांकित करती है। हिमालय की अटलता और विशालता भगवान की स्थिरता और महानता का प्रतीक है।
भगवान् गीता अध्याय 10 में 20 से 39 तक अपने 82 रूपों का वर्णन करते हैं, जिसमें वे अपनी विभूतियों (दिव्य अभिव्यक्तियों) का बोध कराते हैं, जो विश्व में सर्वश्रेष्ठ और प्रमुख रूपों में प्रकट होती हैं।
सादर,
केशव राम सिंघल
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