गीता अध्ययन एक प्रयास
ॐ
जय श्रीकृष्ण 🙏
गीता अध्याय 10 - भगवान् की महिमा
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प्रतीकात्मक चित्र - साभार NightCafe
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बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्द्सामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽमृतूनां कुसुमाकरः।।
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द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्वतामहम्।।
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वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः।
मुनॆनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः।।
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दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मी जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।
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यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।
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नान्तोस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया।।
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यद्यद्विभुमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोन्ऽशसम्भवम्।।
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अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितोजगत्।।
भावार्थ
भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
मैं सामवेद के गीतों में बृहत्साम हूँ और समासों (छंदों) में गायत्री हूँ। महीनों में मार्गशीर्ष (अगहन - नवम्बर-दिसंबर) और समस्त ऋतुओं में कुसुमाकर (वसंत ऋतू) हूँ। मैं धूर्तों (छल करने वालों) में जुआरी हूँ, और वैभवशाली लोगों में वैभव हूँ। मैं विजय हूँ, मैं दृढ संकल्प हूँ, मैं सत्वों में सत्व हूँ। मैं वृष्णि कुल में वासुदेव और पांडवों में अर्जुन हूँ। मैं ऋषियों में व्यासदेव हूँ और कवियों (विचारको) में उशना (शुक्राचार्य) हूँ। अराजकता रोकने के लिए मैं सजा हूँ, औरविजय की आकांक्षा करने वालों की नीति हूँ। मैं रहस्यों के बीच मौन हूँ, और बुद्धिमानों के बीच ज्ञान हूँ। हे अर्जुन, जो समस्त जीवों का जनक बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कुछ भी अस्तित्व में नहीं है, चाहे वह चलायमान हो या अविचल।
हे शत्रुओं को विजय पाने वाले (अर्जुन), मेरी दिव्य महिमा का कोई अंत नहीं है। इस उद्देश्य से मैंने अपनी महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। यह जो भी तेजस्वी ऐश्वर्य है, तुम जान लो कि वह मेरी महिमा का एक अंश मात्र से उत्पन्न हुआ है। हे अर्जुन, यह सब जानो कि अपने एक अंश मात्र से पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर मैं इसको धारण करता हूँ।
(गीता दशम अध्याय समाप्त)
प्रसंगवश
गीता का यह खंड यह समझने के लिए है कि भगवान सर्वत्र और सर्वस्व हैं। प्रत्येक श्रेष्ठ, तेजस्वी, और शक्तिशाली वस्तु या गुण उनकी महिमा का एक अंश है। यह अध्याय भक्तों को यह प्रेरणा देता है कि वे हर जगह और हर रूप में भगवान की उपस्थिति को देखें और उनके प्रति श्रद्धा रखें। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि भगवान की महिमा को समझने के लिए हमें अपने आसपास की श्रेष्ठता, सुंदरता, और शक्ति में उनकी उपस्थिति को देखना चाहिए। यह हमें नम्रता और भक्ति के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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