Friday, April 18, 2025

#102 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 

जय श्रीकृष्ण 🙏


गीता अध्याय 10 - भगवान् की महिमा 












10 / 10 

तेषा सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। 

ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।। 


10 / 11 

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। 

नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भावस्था। 


अर्जुन उवाच 


10 / 12 

परं बृह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्। 

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ।। 


10 / 13 

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा। 

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे।। 


10 / 14 

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव। 

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः।। 


10 / 15 

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम। 

भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते।। 


10 / 16 

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः। 

याभिर्विभूति भिरलोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि।। 


10 / 17 

कथं विद्यामहं योगिनस्त्वां सदा परिचिन्तयन्।

केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया।। 


10 / 18  

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन। 

भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्।।

 

भावार्थ 


भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - 


जो व्यक्ति निरंतर प्रेमपूर्वक मेरी पूजा में लगे रहते हैं, मैं उसे बुद्धियोग (ज्ञान) देता हूँ, जिससे वह मुझे प्राप्त करता है अर्थात् उसका कल्याण हो जाता है। मेरे भक्त पर कृपा करने के लिए उसके ह्रदय में स्थित अज्ञान का अन्धकार प्रकाशयुक्त ज्ञान के दीपक से दूर करता हूँ। 


अर्जुन श्रीकृष्ण भगवान् से कहते हैं - 


आप ही परम ब्रह्म (भगवान्), परम धाम, पवित्र और परम पुरुष हैं। आप शाश्वत (सनातन, नित्य रहने वाले) दिव्य, पुरुष, परमात्मा, आदि ईश्वर, अजन्मा और सर्वव्यापक (सभी जगह रहने वाले, सर्वशक्तिमान) हैं। ऐसा आपके बारे में सभी ऋषि , देवर्षि, नारद, असित, देवल और व्यास कहते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे कह रहे हो। हे केशव (श्रीकृष्ण) जो कुछ तुम मुझसे कह रहे हो, मुझे लगता है कि वह सब सत्य है। हे प्रभु, आपके व्यक्तिम् (स्वरूप) को न तो देवता जानते हैं और न ही दानव। हे भूतभावन (सभी के उद्गम), प्राणियों के रचयिता, सभी प्राणियों के स्वामी, सभी देवताओं के देवता, ब्रह्मांड के स्वामी, हे पुरुषोत्तम, आप अपने आप को स्वयं ही जानते हो। जिस महिमा से आप इन लोकों में व्याप्त हैं, उन सभी बातों को विस्तार से बताइये, क्योंकि आत्मा की महिमा दिव्य है। हे भगवान् (श्रीकृष्ण), मैं योगी होकर सदैव आपका चिंतन करते हुए आपको कैसे जान सकता हूँ? किन-किन भावों में आपका चिंतन (स्मरण) किया जा सकता है? हे जनार्दन (श्रीकृष्ण), आप अपना सामर्थ्य और ऐश्वर्य विस्तार से कहो क्योंकि आपके अमृतमय वचन सुनकर मेरी तृप्ति नहीं हुई है अर्थात् मैं और सुनना चाहता हूँ। 


सार 


भगवान श्रीकृष्ण सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूपों में व्याप्त हैं। वे भक्ति और ज्ञान के माध्यम से भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं, जबकि अर्जुन उनकी महानता को समझकर उनके बारे में और जानने की उत्सुकता व्यक्त करते हैं। यह भक्ति, ज्ञान, और परमात्मा की महिमा के प्रति श्रद्धा का सुंदर समन्वय है। अर्जुन का प्रश्न भक्त की जिज्ञासा को दर्शाता है, जो परमात्मा के स्वरूप को गहराई से समझना चाहता है।


चिंतन 


हमें श्रीकृष्ण की उन विभूतियों का ध्यान करना चाहिए, जो प्रकृति, मानव जीवन, और विश्व में उनकी उपस्थिति को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, सूर्य, चंद्र, अग्नि, या मानव हृदय में विद्यमान विवेक उनकी विभूतियाँ हैं।


सादर,

केशव राम सिंघल 


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