Sunday, October 11, 2020

सार-संक्षेप - ॐ रहस्य

 

*सार-संक्षेप*

*ॐ प्रार्थना*

ओङ्कार बिंदु संयुक्तं

नित्य ध्यायन्ति योगिनः

कामदं मोक्षदं चैव

ओङ्काराय नमो नमः !!

(भावार्थ - योगीजन अनुस्वार से युक्त ओङ्कार का सदा ध्यान करते हैं। यह ओङ्कार सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला और मोक्ष दाता है। हम सभी इन ओङ्कार के प्रति नमस्कार करते हैं।)

* रहस्य*

की महिमा अपार है।  की ध्वनि का निर्माण '', '' और '' इन तीन अक्षरों से हुआ है।

'' अर्थात यह भूलोक और स्थूल दृश्य जगत।

'' अर्थात सूक्ष्म जगत।

'' अर्थात सुपुप्ति से सम्बन्ध रखने वाले अदृश्य, अगोचर अथवा जाग्रत अवस्था में जिसका ज्ञान बुद्धि से नहीं हो सकता और जहां बुद्धि की पहुँच नहीं है और जो मन, बुद्धि और वाणी से परे है। 

सर्व का ही प्रतिरूप है। 

ही प्राण, बुद्धि और विवेक का आधार स्तम्भ है। आदि से अंत तक सभी के अंतर्गत हैं।  बाइबिल में कहा गया है की सृष्टि की आदि में शब्द था, यह शब्द ब्रह्म के साथ ही था और यह शब्द ही ब्रह्म भी था। (In the beginning there was a word, the word was with God and the word was God.) अपनी प्रार्थना के अंत में ईसाई 'अमेन' (Amen) शब्द का प्रयोग करते हैं।  मुसलमान अपनी प्रार्थना (नमाज) में 'आमीन' (Aameen) कहा करते हैं।  ये 'अमीन' और 'आमीन' भी के रूपांतर मात्र हैं। 

सभी ध्वनियों की जीवनी और जीवन सार है। 

जीवन है।

प्राण है।

श्वास है। 

सभी मन्त्रों का मूलमंत्र है। 

सार्वभौमिक मन्त्र है।

गीता का एकेश्वर है। 

वेदों का प्रणव है। 

ब्रह्म का प्रतीक है। 

गुरुनानक का सतनाम एक ओंकार है। 

बाइबिल का शब्द है।

नमाज का आमीन है। 

शक्ति का रहस्यमय शब्द है।

विश्व की प्रत्येक वस्तु का आदि स्रोत है। 

सहायक और अमरता का प्रदायक है।

सब कुछ है। 

का निरंतर जप, संगीत और ध्यान वैदांतिक साधना का आवश्यक भाग है।  तुरीयावस्था, ब्रह्म, आत्मा और एक ही हैं। समस्त वेदों के सार का प्रतीक है। अद्भुत शक्तियों का खजाना है।  वेदांत पथ पर चलने वालों को श्रद्धा और भाव के साथ निरंतर का जप करना चाहिए। 

बार-बार का यश गाओ। अपने हृदय और आत्मा को के संगीत की और सदा लगाए रखो। जीवन की समस्त    क्रियाएं पवित्र प्रणव की पूजा के रूप में करो।  सदा में विचरो। को अपने निवास स्थान का केंद्र बिंदु बना लो।  प्रत्येक श्वास के साथ का उच्चारण करो। ऐसा करो कि की मस्ती छाई रहे। के जागरण-शील साम्राज्य में इस मिथ्या संसार के स्वप्न को बिलकुल भूल जाओ। के दिव्य आनंद में संसार के दुःख-दर्दों को पी जाओ। ही दिव्य, शाश्वत आनंद और शान्ति का परम धाम है। 

जिस समय का ध्यान करने बैठो, कम से कम पाँच मिनट तक सुदीर्घ की प्रणव ध्वनि अवश्य करें।  इससे मन का विक्षेप नष्ट होगा और चित्त भी शांत और एकाग्र हो जाएगा।  संसार की सभी मलिन वासनाएं हैट जाएँगी और निर्मल हृदयाकाश में आत्मानुभूति के परम पवित्र सुन्दर भाव उदय होंगे। 

सादर,

केशव राम सिंघल (सार-संक्षेप सम्पादन)


(साभार - फरवरी 1940 में प्रकाशित - सात्विक जीवन ग्रंथमाला - प्रणव रहस्य, लेखक - स्वामी शिवानंद सरस्वती, प्रकाशक - सात्विक जीवन कार्यालय, बनारस)