Saturday, October 12, 2019

#083 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*
*प्रसंगवश जिज्ञासा*

*जीव क्या है?*


जीव में एक तो चेतन परमात्मा का अंश (शरीरी/आत्मा/देही) है और एक जड़ प्रकृति अंश है।

जीव परमात्मा का अंश है। जीव की परमात्मा से आत्मीयता है, पर जीव ने परमात्मा से विमुख होकर अहंता (अहंकार) के साथ ममता कर ली और मैंपन (यह मैं हूँ, यह मेरा है) से जुड़ गया है।

प्रत्येक जीव में एक व्यष्टि आत्मा है। देहधारी से जुड़ी यह आत्मा ही जीवन शक्ति भी है।

चेतन अंश परमात्मा से जुड़ने की इच्छा करता है और जड़ प्रकृति अंश संसार से जुड़ने की इच्छा करता है। जब कोई देहधारी (व्यक्ति/पशु/पक्षी) मरता है तो उसकी जीवात्मा उसके सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर के साथ उसके स्थूल-शरीर को छोड़ देता है।

जीव = जीवात्मा (चेतन अंश) + सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर (जड़ प्रकृति अंश)

जीवात्मा परमात्मा (ब्रह्म/भगवान) की परा (अपरिवर्तनशील) प्रकृति है, जिसने अपरा (परिवर्तनशील) प्रकृति को धारण कर रखा है, जिससे जीव बना है। जीव की अपनी स्वतन्त्र सत्ता नहीं है।

सादर,

केशव राम सिंघल