Saturday, January 7, 2017

#051 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#051 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण !*

*गीता अध्याय 5 - कर्म संन्यास योग - श्लोक 10, 11 और 12*


5/10
*ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः !*
*लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा !!*


5/11
*कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि !*
*योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये !!*


5/12
*युक्तः कर्मफलं व्यक्तवा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् !*
*अयुक्तः कामकारेण फल सक्तो निबध्यते !!*


*भावार्थ*

(श्रीकृष्ण अर्जुन से)
जो व्यक्ति अपने संपूर्ण कर्मों को परमात्मा में अर्पण कर आसक्ति (राग, द्वेष, लगाव, ममता, कामना) का त्याग करके अपने सभी कर्म करता है, वह जल में रहने वाले कमल के पत्ते की तरह पाप से निर्लिप्त रहता है. *तात्पर्य* -जिस प्रकार कमल का पत्ता जल में पैदा होकर और जल में ही रहकर जल से निर्लिप्त रहता है, उसी प्रकार भक्ति में संलग्न व्यक्ति संसार में रहकर अपनी सभी क्रियाएं करने पर भी भक्ति के कारण संसार से और संसार में हमेशा निर्लिप्त रहता है. (5/10)

कर्मयोगी (कर्तव्य-कर्म करने वाला व्यक्ति) आसक्ति (राग, द्वेष, लगाव, ममता, कामना) का त्याग कर केवल इंद्रियों, शरीर, मन और बुद्धि से अंतःकरण शुद्धि के लिए कर्म करता है. (5/11)

कर्मयोगी कर्मफल का त्याग कर नैष्ठिकी शान्ति को प्राप्त होता है, पर सकाम व्यक्ति कामना के कारण फल में आसक्त होकर बांध जाता है. (5/12)

नैष्ठिकी शान्ति = ऐसी परमशान्ति जो परमात्मा को प्राप्त होने से प्राप्त होता है.
सकाम व्यक्ति = ऐसा व्यक्ति जो कामना (राग, आशा, आसक्ति आदि) का त्यागनहीं कर पाता है.


*प्रसंगवश*

कर्मों के फल चार प्रकार के होते हैं -
(1) *दृष्ट कर्मफल* - ऐसा कर्मफल जो तत्काल दिखता प्रतीत होता है. जैसे - पानी पीने से प्यास का समाप्त हो जाना.
(2) *अदृष्ट कर्मफल* - ऐसा कर्मफल जो संचित होकर संग्रहित होता रहता है और भविष्य में (इस लोक या परलोक में) सुख या दुःख के रूप में मिलता है.
(3) *प्राप्त कर्मफल* - प्रारब्ध-कर्म के अनुसार वर्तमान में मिला यह शरीर, धन, सम्पदा, अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति
(4) *अप्राप्त कर्मफल* - प्रारब्ध-कर्म के अनुसार भविष्य में मिलने वाला फलरूप, जैसे - धन, संपत्ति, अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति


ब्रह्म = ईश्वर जो समग्र गुणों से भरपूर सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार सबकुछ है.

गीता में ब्रह्म के तीन नाम बताए गए हैं - ॐ, तत् और सत्.

सादर,

केशव राम सिंघल

No comments: