Thursday, August 4, 2016

#014 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#014 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

कर्म


2/47 में कर्म (कर्तव्य-पालन ) की बात कही गई है।

यहाँ तीन विचारणीय बिंदु हैं -
(1) वे कर्म जिन्हें हमें अपनी कर्तव्य पालना के लिये करना चाहिए।
(2) विकर्म - जो कर्म निंदनीय है, जो विधि-सम्मत नहीं हैं, जो हमारे कर्तव्य भी नहीं है।
(3) अकर्म - अपने कर्मों को नहीं करना अर्थात् अपने कर्तव्य की पालना नहीं करना।

श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया कि निष्क्रिय न रहो, बल्कि फल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करो। अकर्म अर्थात् अपने कर्तव्यों की पालना न करना पापमय है।

सादर,

केशव राम सिंघल

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