Wednesday, August 3, 2016

#012 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#012 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*संक्षिप्त कथा - गीता अध्याय 2 - श्लोक 51 से 56 तक*


श्रीकृष्ण अर्जुन से -
बुद्धि-योग से युक्त व्यक्ति (अर्थात् सदैव चंचल रहने वाली इंद्रियों को वश में करने वाला) इस जीवन में ही अपने कर्मों से उत्पन्न अच्छे और बुरे फलों से मुक्त कर लेता है, अतः इस तरह बुद्धि-योग के लिए कुशलता से लग जाओ। जब तुम्हारी बुद्धि मोह के घने जंगल को पार कर लेगी तब सुने हुए और सुनाने में आने वाले सभी भोगो से तुम्हें विरक्ति हो जाएगी। जब तुम्हारा मन वेदों की अलंकारमयी भाषा से विचलित नहीं होगा और जब तुम्हारी बुद्धि आत्म-साक्षात्कार में स्थिर हो जाएगी, तब तुम्हे दिव्य चेतना प्राप्त होगी।

अर्जुन श्रीकृष्ण से प्रश्न करते हैं - हे कृष्ण! आध्यात्म में लीन स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं? वह कैसे बोलता है, कैसे रहता है और कैसे चलता है?

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - हे अर्जुन! जब मनुष्य मन में स्थित सभी कामनाओं को त्याग देता है और जब इस तरह शुद्ध हुआ उसका मन संतुष्ट रहता है, तब वह दिव्य-चेतना को प्राप्त करता है। दुःख में जिसका मन विचलित नहीं होता, सुख में जो रुचिरहित रहता है और जो राग (आसक्ति), भय और क्रोध से मुक्त होता है, वह स्थिर बुद्धि वाला मुनि कहलाता है।

सादर,

केशव राम सिंघल

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