Tuesday, August 2, 2016

#011 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#011 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

संक्षिप्त कथा - गीता अध्याय 2 - श्लोक 39 से 50 तक


श्रीकृष्ण अर्जुन से -
अब तक मैंने वैश्लेषिक अध्ययन द्वारा ज्ञान योग का वर्णन किया है। अब तुम निष्काम भाव से कर्म करने का ज्ञान सुनो। अगर तुम निष्काम भाव से अपना कर्म करोगे तो तुम अपने आप को कर्मों के बंधन से मुक्त कर सकोगे। इस प्रकार कर्म करने में न तो कोई हानि है और ना ही कोई ह्रास होता है। बल्कि इस तरह कार्य करने की थोड़ी सी कोशिश भी विशाल भय से रक्षा करती है। इस संसार में जिनकी बुद्धि स्थिर रहती है, उनका निश्चय (लक्ष्य) एक होता है। अस्थिर व्यक्तियों की बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है। अविवेकी (अल्पज्ञानी) व्यक्ति वेदों के अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हुए ऐसी दिखावटी बातें कहते हैं कि इससे बढ़कर कुछ भी नहीं है।कामनाओं और स्वर्ग (ऐश्वर्य) की प्राप्ति के इच्छुक उत्तम जन्म के लिए सकाम कर्म करने की संतुति करते हैं और कहते हैं कि इससे बढ़कर कुछ नहीं है। भौतिक भोग और ऐश्वर्य के प्रति आसक्त व्यक्ति ऐसी वस्तुओं से मोहग्रसित हो जाते हैं और उनकी बुद्धि कभी भी नियंत्रित मन वाली नहीं हो पाती है। वेदों में प्रकृति के तीन गुण वर्णित हुए हैं। तुम इन गुणों से ऊपर उठो। अपने आप को हर्ष-शोक के द्वैतभाव से मुक्त करते हुए लाभ और रक्षा सम्बन्धी चिंताओं से मुक्त रहकर आत्म-परायण बनो। सभी प्रकार के बढ़े (विशाल) जलाशय होने पर भी एक छोटे जलाशय से मनुष्य का प्रयोजन पूरा हो जाता है, उसी तरह पूर्ण ज्ञानी ब्राह्मण का वेदों से समस्त प्रयोजन पूरा होता है। तुम्हें अपना कर्म करने (कर्तव्य पालना) का अधिकार है, किन्तु कभी भी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण ना मानो, ना ही कर्म ना करने के प्रति आसक्त होओ। ( तात्पर्य - फल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करो। ) हे अर्जुन! सफलता-विफलता (जय-पराजय) की आसक्ति को त्यागकर समभाव से अपना कर्म करो। ऐसा समभाव योग कहलाता है। ( टिप्पणी - योग का अर्थ सदैव चंचल रहने वाली इंद्रियों को वश में करते हुए मन को एकाग्र करना। ) निश्चय कर अपनी बुद्धि के योग से निंदनीय कर्मों से दूर रहो और ऐसी चेतना में पूर्ण समर्पण का प्रयत्न करो। कंजूस व्यक्ति सकाम कर्म की अभिलाषा रखते हैं। भक्ति में संलग्न व्यक्ति पाप और पुण्य (अच्छे-बुरे फलों) से अपने को मुक्त कर लेता है अतः तुम अपने समस्त कर्मों में योग के लिए कुशलता से प्रयत्न करो।

सादर,

केशव राम सिंघल

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