Thursday, May 1, 2025

गीता अध्ययन एक प्रयास - गीता ज्ञान - 02 - जीव, आत्मा, और शरीर की प्रकृति

गीता अध्ययन एक प्रयास 

गीता ज्ञान - 02 - जीव, आत्मा, और शरीर की प्रकृति

******** 











चित्र साभार NightCafe 

जीव का  मनुष्य योनि में जन्म केवल उसके अपने कल्याण के लिए हुआ है। 


जीव में एक तो चेतन परमात्मा का अंश है और एक जड़ प्रकृति का अंश है। यह विचार गीता के अध्याय 7, श्लोक 4-5 में देखने को मिलता है, जहाँ श्रीकृष्ण अपनी अपरा (जड़) और परा (चेतन) प्रकृति का वर्णन करते हैं। चेतन अंश के कारण जीव परमात्मा में लीन होना चाहता है और जड़ अंश के कारण वह संसार से राग हटा नहीं पाता। परमात्मा की सत्ता और जीव की सत्ता एक ही है। राग-द्वेष को नियंत्रित करने के लिए हमें नकारात्मक भावों को अपने अंतर्मन में आने से रोकना चाहिए। इसके लिए प्रातःकालीन ध्यान साधना एक सरल उपाय हो सकता है। 


शरीर और शरीरी (आत्मा) - शरीर जड़ है और आत्मा चेतन है। शरीर नाशवान है, आत्मा अविनाशी है। शरीर का आकार होता है, आत्मा निर्विकार है। शरीर में प्रतिक्षण परिवर्तन होता है और आत्मा अनंतकाल तक ज्यों का त्यों ही रहता है। शरीर जड़ संसार का निवासी है और आत्मा परमात्मा का अंश है। आत्मा निरंतर अमरता में रहता है और शरीर निरंतर मृत्यु में रहता है। शरीर हमारा (व्यक्ति का) स्वरूप नहीं है। हमारा स्वरूप काल से अतीत है। शरीर को अपना स्वरूप मानने से हमें काल (भू, भविष्य और वर्तमान) दीखता है। यह गीता के अध्याय 2, श्लोक 13-25 के ज्ञान से पूरी तरह मेल खाता है, जहाँ आत्मा की अमरता और शरीर की क्षणभंगुरता का वर्णन है।


अनेक युग बीत जाएं तो भी आत्मा बदलता नहीं क्योंकि वह परमात्मा का अंश है। शरीर प्रतिक्षण बदलता रहता है। आत्मा द्रष्टा है और शरीर दृश्य है। आत्मा दीखता नहीं है, शरीर दीखता है। शरीर में अवस्थाओं का परिवर्तन होता रहता है, जबकि आत्मा में परिवर्तन नहीं होता। आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाता है।  


स्थूल शरीर का हमें ज्ञान होता है, पर सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर का हमें ज्ञान नहीं होता। स्थूल-शरीर का ज्ञान होने के कारण हम स्थूल-शरीर की अवस्थाओं (बालक, जवानी, बुढ़ापा) समझ पाते हैं। सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर का ज्ञान उसकी अवस्थाओं में होता है। स्थूल-शरीर की जागृत, सूक्ष्म-शरीर की स्वप्न और कारण-शरीर की सुषुप्ति अवस्था मानी जाती है। कारण-शरीर में स्वभाव रहता है, जिसको हम स्थूल दृष्टि से आदत कहते हैं।  


स्थूल-शरीर की अवस्थाओं (बालक, जवानी, बुढ़ापा) के बदलने पर तो उसका ज्ञान होता है, पर देहान्तर होने पर पूर्व-जन्म के शरीर का ज्ञान नहीं होता क्योंकि देहान्तर (जन्म और मृत्यु) के समय बहुत ज्यादा कष्ट होता है और उस कष्ट के कारण बुद्धि में पूर्व-जन्म की स्मृति नहीं रहती। देहान्तर की प्राप्ति होने पर पहले वाला स्थूल-शरीर छूट जाता है, पर यदि कल्याण (मोक्ष) प्राप्त न हो तो सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर नहीं छूटते।  


ॐ तत् सत्। 


सादर, 

केशव राम सिंघल 


No comments: