Saturday, May 17, 2025

112 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 

जय श्रीकृष्ण 🙏


गीता अध्याय 11 - भगवान् का विराट रूप 

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11 / 47 

श्रीभगवानुवाच 

मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शित्मात्मयोगात्।

तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्।। 


11 / 48 

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।

एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं तवदन्येन कुरु प्रवीर।। 


11 / 49 

मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ् ममेदम्।

व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।। 


11 / 50 

सञ्जय उवाच 

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।

आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।। 


11 / 51 

अर्जुन उवाच 

दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।


भावार्थ  


भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा - 


हे अर्जुन, मैंने प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें यह अपनी अन्तरङ्गशक्ति से यह रूप दिखाया है। यह तेजोमय समग्र ब्रह्माण्ड, अनन्त और मौलिक, जिसे आपके अलावा किसी ने पहले कभी नहीं देखा। न तो वेदों के अध्ययन से और यज्ञों से, न ही दान से, न ही अनुष्ठानों से, न ही कठोर तपस्या से, 

हे पराक्रमी (अर्जुन), आपके अतिरिक्त अन्य कोई भी मुझे इस भौतिक जगत में इस रूप में नहीं देख सकता। मेरे इस भयानक रूप को देखकर तुम व्याकुल मत होओ और न ही भ्रमित होओ, तुम्हारा भय दूर करता हूँ और मन प्रसन्न हो गया है, अब तुम मेरे इसी रूप को फिर से देखो। 


संजय ने धृतराष्ट्र से कहा - 


श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ऐसा कहकर वसुदेवजी (भगवान् श्रीकृष्ण) ने पुनः उसे अपना स्वरूप दिखाया। फिर भगवान् ने सौम्य रूप धारण कर भयभीत अर्जुन को धैर्य प्रदान किया। 


अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा -


हे जनार्दन (भगवान् श्रीकृष्ण), आपके इस सौम्य मानव रूप को देखकर अब मैं शांत हो चुका हूँ, होश में हूँ और प्रकृति के बीच वापस चला गया हूँ। 


प्रसंगवश 


गीता अध्याय 11 के 47 से 51 श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन और उसके बाद सौम्य रूप में वापसी का वर्णन है। श्लोक 47 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि उन्होंने अपनी योगमाया से प्रसन्न होकर अर्जुन को अपना तेजोमय, अनन्त, विश्वरूप दिखाया, जो पहले किसी ने नहीं देखा। श्लोक 48 में वे कहते हैं कि यह विराट रूप न वेदाध्ययन, यज्ञ, दान, कर्मकांड, या तपस्या से देखा जा सकता है; यह केवल अर्जुन को विशेष कृपा से दिखाया गया। श्लोक 49 में भगवान अर्जुन को इस भयावह रूप से विचलित या भ्रमित न होने का आश्वासन देते हैं और कहते हैं कि अब वे अपने सौम्य रूप में वापस आ रहे हैं। श्लोक 50 में संजय युद्धिष्ठर को बताते हैं कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना सामान्य (सौम्य) रूप पुनः दिखाया और भयभीत अर्जुन को सांत्वना दी। श्लोक 51 में अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से कहते हैं कि भगवान के सौम्य मानव रूप को देखकर अब वे शांत, सचेत, और अपनी सामान्य अवस्था में लौट आए हैं।


ये श्लोक भगवान के विराट और सौम्य दोनों रूपों के दर्शन के महत्व को दर्शाते हैं। विराट रूप भगवान की अनन्तता और सर्वोच्चता को प्रकट करता है, जबकि सौम्य रूप उनकी करुणा और भक्त के साथ सामान्य संबंध को दर्शाता है। यह अध्याय भक्ति, कृपा, और भगवान के स्वरूप के प्रति श्रद्धा का महत्व भी रेखांकित करता है।


सादर, 

केशव राम सिंघल 


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