Sunday, May 11, 2025

110 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 

जय श्रीकृष्ण 🙏


गीता अध्याय 11 - भगवान् का विराट रूप 

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11 / 32  


श्रीभगवानुवाच 


कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।। 


11 / 33  

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।। 


11 / 34 

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।


11 / 35 

सञ्जय  उवाच 

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी।

नमस्कृत्वा भूय एवाः कृष्णं सगद्रदं भीतभीतः प्रणम्य।। 


11 / 36 

अर्जुन उवाच 

स्थाने ह्रषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।


11 / 37 

कस्माश्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।

अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्।। 


11 / 38 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरुप।। 


11 / 39 

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि  नमो नमस्ते।। 


11 / 40 

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।

अनन्त्वीर्यामितविक्रंस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।। 


भावार्थ 


भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा - 


मैं काल हूँ, लोकों का नाश करने वाला,लोगों का विनाश करने के लिए यहाँ आया हूँ। तुम्हारे सिवा विरोधी सेनाओं में कोई अन्य योद्धा खड़ा नहीं रहेगा। हे सव्यसाची (अर्जुन), इसलिए उठो और यश प्राप्त करो, अपने शत्रुओं पर विजय पाओ और समृद्ध राज्य का आनन्द लो। मैंने इन्हें पहले ही मार दिया है, तुम तो युद्ध में निमित्तमात्र हो। द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण और अन्य वीर योद्धाओं को मैंने पहले ही मार दिया है, अतः उनको मार डालो, चिन्ता मत करो, युद्ध करो, तुम युद्ध में अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे।

 

संजय ने धृतराष्ट्र से कहा - 

केशव (भगवान् श्रीकृष्ण) के ये वचन सुनकर किरीटी (अर्जुन) हाथ जोड़कर कांपने लगे और भयभीत होकर उसने भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम कर अवरुद्ध स्वर में इस प्रकार कहा। 


अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा - 

हे हृषीकेश (श्रीकृष्ण), आपके नाम के श्रवण से संसार आनन्दित होता है और आपकी कीर्ति से आकर्षित होता है। राक्षस भयभीत होकर इधर-उधर भाग रहे हैं और सिद्धपुरुष आपको नमस्कार करते हैं। हे महान् आत्मा (भगवान् श्रीकृष्ण), आप अनन्त देवों के स्वामी हैं, ब्रह्माण्ड के स्रोत हैं, आप अविनाशी सत्ता और परब्रह्म हैं। फिर वे उस महान ब्रह्म के रचयिता को क्यों नहीं प्रणाम करें? आप आदिदेव हैं, आप पुरातन पुरुष हैं, आप इस ब्रह्मांड के सर्वोच्च निधि हैं। हे अनंत रूप (भगवान् श्रीकृष्ण) आप ही जानने योग्य और परम धाम के ज्ञाता हैं और आप ही से यह जगत व्याप्त है। आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चंद्रमा, सृष्टिकर्ता और पितामह हैं। मैं आपको हजार बार नमस्कार करता हूँ और मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ। आगे और पीछे से आपको नमस्कार है, हर जगह और चारो ओर से आपको नमस्कार है। आप अनन्त और अपरिमित शक्तिमान हैं, आप सबमें व्याप्त हैं, अतः आप ही सब कुछ हैं। 


प्रसंगवश 


गीता श्लोक 32 से 40 में भगवान श्रीकृष्ण अपने विराट स्वरूप के माध्यम से अर्जुन को यह समझाते हैं कि वे कालरूप में विश्व का संहार करने वाले हैं और युद्ध के परिणाम पहले ही निश्चित हैं। भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म में प्रवृत्त होने और यश प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं, क्योंकि द्रोण, भीष्म, कर्ण जैसे योद्धा भगवान द्वारा पहले ही निहत किए जा चुके हैं, और अर्जुन केवल निमित्तमात्र है। संजय इस दृश्य का वर्णन करते हुए बताते हैं कि अर्जुन भयभीत और विनम्र होकर भगवान को प्रणाम करते हैं। इसके बाद, अर्जुन भगवान की स्तुति करते हैं, उन्हें विश्व के मूल स्रोत, अनंत, सर्वव्यापी, और सभी रूपों (वायु, यम, अग्नि आदि) में विद्यमान बताते हैं। वे बार-बार भगवान को नमस्कार करते हैं, उनकी अनंत शक्ति और महिमा को स्वीकार करते हुए।


इन श्लोकों का मुख्य संदेश निम्न है - 


- भगवान सर्वशक्तिमान और विश्व के नियंता हैं; सभी घटनाएँ उनकी इच्छा से संचालित होती हैं।


- मनुष्य को केवल अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, क्योंकि परिणाम भगवान के हाथ में है।


- भगवान की महिमा अनंत है, और उनकी भक्ति व विनम्रता ही मनुष्य को सही मार्ग दिखाती है।


सादर, 

केशव राम सिंघल 


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