Wednesday, May 7, 2025

109 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 

जय श्रीकृष्ण 🙏


गीता अध्याय 11 - भगवान् का विराट रूप 

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11 / 24 

नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्।

दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यधितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।। 


11 / 25 

दन्ष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।

दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास।। 


11 / 26 

अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै:।

भीष्मो द्रोणः सुत्पुत्र्स्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ।।


11 / 27 

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दन्ष्ट्राकरालानि भयानकानि।

केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः।। 


11 / 28 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।

तथा तवामि नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।। 


11 / 29 

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः। 

तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।। 


11 / 30 

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः। 

तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो।। 


11 / 31 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु देववर प्रसीद।

विग्यातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।


भावार्थ 


अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से कहते हैं - 


हे विष्णु (भगवान् श्रीकृष्ण), आपका चेहरा आसमान को छू रहा है और वह कई रंगों में चमक रहा है। आपकी आँखें बड़ी और चमक रही है। 

आपको देखकर मेरी अन्तरात्मा व्याकुल हो गयी है और मुझे न तो धैर्य मिलता है और न ही शांति। हे देवों के स्वामी, हे ब्रह्माण्ड के पालनहार, आपका चेहरा और नुकीले दाँत भयानक और प्रलय की तरह लग रहे हैं, मैं संतुलन नहीं रख पा रहा हूँ। मुझ पर दया करो। धृतराष्ट्र के सभी पुत्र तथा अनेक राजाओं की सेना सहित भीष्म, द्रोण, सूतपुत्र (कर्ण)और हमारे प्रमुख योद्धाओं के साथ आपके भयानक और डरावने नुकीले दाँतों के बीच आपके मुँह में घुसे हुए आपके दाँतों तले दबे पड़े दिखाई देते हैं, उनके ऊपरी अंग कुचले हुए दिखाई देते हैं। जैसे बहुत सी नदियाँ समुद्र की ओर बहती हैं, उसी प्रकार मनुष्यों की दुनिया के नायक तुम्हारे प्रज्ज्वलित चेहरों में प्रवेश कर रहे हैं। जैसे पतंगे जलती हुई आग में स्वयं नष्ट होने के लिए तीव्र गति से प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार समस्त लोक विनाश के लिए तीव्र गति से तुम्हारे मुख में प्रवेश कर रहे हैं। हे विष्णु, आप अपने ज्वलन्त मुखों से सम्पूर्ण संसार को चाटकर निगल रहे हो। आपकी प्रचण्ड किरणें सम्पूर्ण जगत को अपने तेज से परिपूर्ण कर रही हैं। हे देव-वर (देवताओं में श्रेष्ठ), कृपया मुझे बताइये कि आप कौन हैं? कृपया प्रसन्न होइये। मैं आपको मूल रूप से, जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैं आपके प्रयोजन को नहीं जान पा रहा हूँ। 


प्रसंगवश 


गीता के ग्यारहवें अध्याय के उपर्युक्त वर्णित श्लोकों में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर अभिभूत और भयभीत होकर उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। भगवान का यह रूप विशाल, तेजस्वी, बहुरंगी और भयंकर है, जिसमें उनकी चमकती विशाल आँखें, नुकीले दाँत और प्रलयकारी मुख दिखाई देते हैं। इस दृश्य को देखकर अर्जुन का मन व्याकुल हो जाता है, और वे धैर्य व शांति खो देते हैं। वे देखते हैं कि धृतराष्ट्र के पुत्र, भीष्म, द्रोण, कर्ण सहित अनेक योद्धा भगवान के भयानक मुखों में प्रवेश कर रहे हैं, जहां उनके शरीर दाँतों तले कुचले जा रहे हैं। अर्जुन इस दृश्य की तुलना नदियों से करते हैं, जो समुद्र में समा जाती हैं, और पतंगों से, जो आग में जलकर नष्ट हो जाते हैं। भगवान के तेजस्वी मुख समस्त लोकों को निगल रहे हैं, और उनकी प्रचंड किरणें सृष्टि को तप्त कर रही हैं। अंत में, अर्जुन भय और श्रद्धा के साथ भगवान से उनके इस उग्र रूप का परिचय पूछते हैं, उनकी कृपा मांगते हैं और उनके मूल स्वरूप व प्रयोजन को समझने की इच्छा व्यक्त करते हैं।


यह खंड भगवान श्रीकृष्ण के सर्वशक्तिमान, सर्वनाशक और सृष्टि के नियामक स्वरूप को दर्शाता है, जो काल और कर्म के अधीन सभी को समेट लेता है।


सादर,

केशव राम सिंघल 


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