Thursday, December 29, 2016

#048 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#048 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण !*


*गीता अध्याय 5 - कर्म संन्यास योग - श्लोक 6 और 7*

5/6
*सन्न्यास्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: !*
*योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति !!*


5/7
*योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितिन्द्रियः !*
*सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते !!*


*भावार्थ*

(श्रीकृष्ण अर्जुन से)
परन्तु, हे महाबाहो (अर्जुन) ! कर्मयोग के बिना संन्यास (सांख्ययोग) पाना कठिन है. मननशील कर्मयोगी (कर्तव्य-कर्म करने वाला व्यक्ति) शीघ्र ही ब्रह्म (परमात्मा) को प्राप्त कर लेता है. (5/6)

ऐसा कर्मयोगी (कर्तव्य-कर्म करने वाला व्यक्ति) कर्म करते हुए भी कर्मों से नहीं बंधता है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके वश में हैं, जिसका अंतःकरण निर्मल है, जिसने अपने शरीर को वश में किया हुआ है और जिसकी आत्मा ही सभी प्राणियों की आत्मा है. (5/7)

सादर,

केशव राम सिंघल


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