Tuesday, December 6, 2016

#041 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#041 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण !*

*गीता अध्याय 4 - श्लोक 27 व 28*


4/27
*सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे: !*
*आत्मसंयमयोगागनौ जुह्वति ज्ञानदीपते !!*


*भावार्थ* - (श्रीकृष्ण अर्जुन से) - कुछ योगी अपनी सभी इन्द्रियों की क्रियाओं और प्राणों की सभी क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्मसंयम योगरूपी अग्नि में हवन करते हैं अर्थात् मन-बुद्धि सहित सभी इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाओं को रोककर समाधि में लीन हो जाते हैं.

4/28
*द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे !*
*स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः !!*


*भावार्थ* - (श्रीकृष्ण अर्जुन से) - कुछ योगी महाव्रत करनेवाले प्रयत्नशील द्रव्ययज्ञ करते हैं, कुछ तपोयज्ञ, कुछ योगयज्ञ और कुछ स्वाध्याय ज्ञान यज्ञ करते हैं.

*प्रसंगवश*

*समाधि और निद्रा में अंतर ?*

समाधि और निद्रा दोनोँ का शरीर से सम्बन्ध है. बाहर से दोनों की समान अवस्था दिखाई पड़ती है, पर दोनों में भिन्नता है. समाधिकाल में ज्ञान प्रकाशित (जाग्रत) रहता है, जबकि निद्राकाल में वृतियां अज्ञान में लीन हो जाती हैं. समाधिकाल में प्राणों की गति रुक जाती है, जबकि निद्राकाल में प्राणों की गति चलती रहती है.

*महाव्रत* = सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य का पालन, अपरिग्रह पालन (भोगबुद्धि से संग्रह से दूर रहना) और चोरी न करना.

*द्रव्ययज्ञ* = संसार हित में मंदिर, धर्मशाला, विद्द्यालय आदि बनवाना, गरीब लोगों को दान देना.

*तपोयज्ञ* = अपने कर्तव्यपालन में जो भी कठिनाईयां आएं, उन्हें प्रसन्नतापूर्वक सह लेना.

*योगयज्ञ* = अंतःकरण की समता रखना = कार्य होने और कार्य ना होने, परिणाम मिलाने और ना मिलाने, अनुकूल और प्रतिकूल (विपरीत) परिस्थिति में, प्रशंसा होने और निन्दा होने में, आदर और निरादर में समान भाव रखना = अंतःकरण में हलचल, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, सुख-दुःख का ना होना.

*स्वाध्याय ज्ञान यज्ञ* = लोकहित में धार्मिक साहित्य का पठन-पाठन करना, अपनी वृतियों और जीवन का अध्यन करना. गीता का अध्ययन स्वाध्याय ज्ञान यज्ञ का एक भाग है.

सादर,

केशव राम सिंघल


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