Friday, November 4, 2016

#035 - गीता अध्ययन एक प्रयास


#035 - गीता अध्ययन एक प्रयास


जय श्रीकृष्ण

4/2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः !
स कालेनेह महता योगो नष्ट: परंतप !!

4/3
स एवायं मया तेअद्य योग: प्रोक्त: पुरातन !
भक्तोअसी मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् !!

4/4
अर्जुन उवाच -
अपरं भवतो जन्म परं जन्म वैवस्वत: !
कथमेत द्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति !!


भावार्थ

(श्रीकृष्ण अर्जुन से) -
हे परन्तप (अर्जुन) ! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस कर्मयोग को राजर्षियों ने जाना परंतु बहुत समय बीत जाने के कारण वह योग इस पृथ्वी लोक से लुप्तप्राय हो गया। (4/2)

तू मेरा भक्त और प्रिय मित्र है, इसलिए यह पुरातन योग मैंने आज तुझसे कहा है, क्योंकि यह उत्तम रहस्य (ज्ञान) है। (4/3)

अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा -
आपका जन्म तो अभी का है और सूर्य का जन्म तो बहुत पुराना है, अतः आपने ही सृष्टि के आरम्भ में यह योग कहा था, यह बात मैं कैसे मानूँ? (4/4)

प्रसंगवश

कर्म संसार के लिए होते हैं और योग स्वयं के लिए होता है। व्यक्ति को यह शरीर कर्मयोग का पालन करने के लिए मिला, पर स्वार्थ बढ़ जाने के कारण सेवा की तरफ व्यक्ति का ध्यान नहीं रहा। इस प्रकार जिस प्रयोजन के लिए यह शरीर मिला, उसे भूल जाना कर्मयोग का लुप्त होना रहा।

श्लोक 4 में अर्जुन श्रीभगवान कृष्ण से अपनी जिज्ञासा जानना चाहते हैं कि किस प्रकार श्रीकृष्ण ने इस कर्मयोग की जानकारी सूर्य को बताई।

सादर,

केशव राम सिंघल


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