Tuesday, November 22, 2016

#036 - गीता अध्ययन एक प्रयास


#036 - गीता अध्ययन एक प्रयास


जय श्रीकृष्ण !


4/5
श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन !
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप !!


भावार्थ
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
हे परन्तप (अर्जुन)! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं. उन सबको मैं जानता हूँ, पर तू नहीं जानता.

प्रसंगवश - इस श्लोक में पुनर्जन्म की शाश्वत व्यवस्था को इंगित किया गया है और बताया गया है कि शरीर बदलने के साथ जीवात्मा सब कुछ भूल जाता है, जैसे अर्जुन अपने पूर्व जन्मों को भूल चुका है.

4/6
अजोअपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोअपि सन !
प्रकृतिं स्वामधिष्ढाय सम्भवाक्यात्ममायया !!


भावार्थ
(श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं) -
मैं अजन्मा और अविनाशी हूँ और सभी प्राणियों का ईश्वर होते हुए अपनी प्रकृति को अधीन कर अपनी योगमाया से इस पृथ्वी पर प्रकट हुआ हूँ।

प्रसंगवश - श्रीभगवान अपनी प्रकृति के अनुसार समय-समय पर इस पृथ्वी पर अवतार लेते हैं।

4/7
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत !
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !!


भावार्थ
(श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं) -
हे भरतवंशी (अर्जुन)! जब जब धर्म का पतन होता है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब तब मैं प्रकट होता (जन्म लेता) हूँ.

4/8
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् !
धर्मसंस्थापनार्थाय संभावामि युगे युगे !!


भावार्थ - (श्रीकृष्ण अर्जुन से) - साधुओं की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता (प्रकट होता) हूँ.

4/9
जन्म कर्म च में दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः: !
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नीति मामेति सोअर्जुन !!


भावार्थ - (श्रीकृष्ण अर्जुन से) - हे अर्जुन ! जो मेरे दिव्य रूप और कर्मों की वास्तविक प्रकृति को जानता है, वह अपने शरीर को त्यागने के बाद पुन: जन्म नहीं लेता है. वह मुझे ही प्राप्त होता है अर्थात् उसका कल्याण हो जाता है.

4/10
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः !
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः !!


भावार्थ - (श्रीकृष्ण अर्जुन से) - राग (आसक्ति), भय और क्रोध से मुक्त मुझमें तन्मय होकर मेरी शरण में आकर अनेक व्यक्ति ज्ञानरूपी तप से पवित्र होकर मुझे प्राप्त कर चुके हैं अर्थात् अनेक व्यक्तियों का कल्याण हो चुका है.

सादर,

केशव राम सिंघल



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