Thursday, November 3, 2016

#034 - गीता अध्ययन एक प्रयास


#034 - गीता अध्ययन एक प्रयास


जय श्रीकृष्ण

गीता अध्याय 4
ज्ञान कर्म संन्यास योग
दिव्य ज्ञान

श्रीभगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् !
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्षवाकवेअब्रवीत !! (4/1)


भावार्थ
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा -
मैंने इस अविनाशी योग (कर्मयोग) को सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत (मनु) से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इस्वाकु से कहा।

तात्पर्य

यहां श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य है कि गृहस्थों ने कर्मयोग की शिक्षा को जानकर अपनी कामनाओं का नाश कर अपना कल्याण किया। उसी प्रकार व्यक्ति कर्मयोग का पालन कर परमात्मा को प्राप्त कर अपना कल्याण कर सकता है।

प्रसंगवश

अभी कलयुग चल रहा है और अभी कलयुग के केवल लगभग 5,000 वर्ष ही बीते हैं। कलयुग की पूर्णायु 4,32,000 वर्ष है। कलयुग से पहले द्वापरयुग 8,00,000 वर्ष का था और इससे पूर्व त्रेतायुग 12,00,000 वर्ष का था। इस प्रकार लगभग 20,05,000 वर्ष पूर्व गीता ज्ञान मनु ने अपने पुत्र इस्वाकु को कहा था। श्रीकृष्ण ने इस ज्ञान को लगभग 5,000 वर्ष पूर्व अर्जुन से पुनः कहा। हमें इस ज्ञान का लाभ लेना चाहिए।

चलते-चलते

# श्रद्धा का अर्थ है अटूट विश्वास।
# ईश्वर, आत्मा, आध्यात्म ज्ञान श्रद्धा के विषय हैं।

कथ्य-विशेष

गीता-ज्ञान लाभप्रद है। यह मानव के जीवन उद्देश्य की प्राप्ति और मानव कल्याण के लिए अत्यंत सहायक है। गीता का श्रवण या अध्ययन व्यक्ति को अपने हित के लिए करना चाहिए। हमें यह भ्रान्ति रहती है कि अधिक से अधिक भौतिक सुविधाओं की प्राप्ति से हम सुखी रह सकते हैं। हमें ईश्वर की महानता स्वीकार करनी चाहिए और यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि जीवों की वास्तविक स्थिति क्या है? हमें गीता का श्रवण या अध्ययन कर लाभान्वित होने का प्रयास करना चाहिए।

गीता में आध्यात्मिक ज्ञान भरा पड़ा है। यह आध्यात्मिक साहित्य का महत्वपूर्ण ज्ञान ग्रन्थ है। गीता का मर्म गीता में ही अभिव्यक्त है। गीता-ज्ञान के वक्ता श्रीकृष्ण हैं, जो ईश्वर (अव्यक्त) के व्यक्त स्वरूप हैं।

गीता को भक्तिभाव से ग्रहण करना चाहिए। गीता का प्रयोजन मनुष्य को भौतिक संसार से उबारना है। हमारा अस्तित्व अव्यक्त (अनस्तित्व) के परिवेश में है। हमें अव्यक्त (अनस्तित्व) से डरने की आवश्यकता नहीं है। हमें गीता से यह जानने का अवसर मिलता है कि ईश्वर क्या है, आत्मा क्या है, जीव क्या है, प्रकृति क्या है, यह संसार, जो दिखता है (अर्थात् दृश्य-जगत), क्या है, यह काल कैसे नियंत्रित होता है और जीवों के कार्य-कलाप क्या हैं?

ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर हमारा नियन्ता है। हम भौतिक जगत में रहते हैं, जिसकी भौतिक प्रकृति ईश्वर द्वारा नियंत्रित है। हमें यह जानना और स्वीकार करना चाहिए कि इस जगत के पीछे नियन्ता का हाथ है।

हममें भी सूक्ष्म-ईश्वर विद्यमान है। वह (ईश्वर) हर जगह रहता है।

श्रद्धा का अर्थ है अटूट विश्वास। गीता श्रवण या अध्ययन भी श्रद्धा का विषय है।

सादर,

केशव राम सिंघल



No comments: