Monday, September 9, 2019

#080 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*


#080 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*


8/7
*तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च !*
*मय्यर्पित्मानोबुद्धिर्मामेवैन्यास्यसंशयः !!*

मय्यर्पित्मानोबुद्धिर्मामेवैन्यास्यसंशयः = मयि + अर्पित + मन + बुद्धि + माम् + एव + एण्यसि + असंशय

8/8
*अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा न्यान्यागामिना !*
*परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिंतयन् !!*


8/9
*कविं पुरानमानुशासिता रमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः !*
*सर्वस्य धातारामचिन्त्य रूपमादित्यवर्णं तमस् परस्तात् !*


8/10
*प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव !*
*भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् !!*


*भावार्थ*

श्रीभगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
इसलिए तू हर समय मेरा स्मरण कर और युद्ध (कर्तव्यकर्म) भी कर. मुझमें (भगवान में) मन बुद्धि अर्पित करने वाला निसंदेह मुझे (भगवान को) ही प्राप्त होगा. (8/7) हे पार्थ (अर्जुन) ! अभ्यासयोग (संसार से मन हटाकर परमात्मा में बार-बार मन लगाना) से युक्त और अविचलित भाव (अन्य का चिंतन न करने वाले चित्त) से परम दिव्य पुरुष (परमात्मा) का चिंतन करता हुआ शरीर छोड़ने वाला व्यक्ति उसी को अर्थात् परम दिव्य परमात्मा को प्राप्त होता है. (8/8) जो व्यक्ति सर्वज्ञ, अनादि (प्राचीनतम, पुरातन) सब पर शासन करने वाला(नियन्ता) सूक्ष्म से अत्यंत सूक्ष्म सभी का पालक (पालन-पोषण करने वाला) अज्ञान से अत्यंत परे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप (ज्ञान स्वरूप) ऐसे अकल्पनीय स्वरूप का चिंतन करता है. (8/9) वह भक्तियुक्त व्यक्ति अंत समय में (मरते वक्त) स्थिर मन और योग-शक्ति से अपने प्राणों को अपनी भृकुटी (दोनों भौहों) के मध्य में स्थिर कर लेता है, शरीर छोड़ने पर उसपरं दिव्य पुरुष (परमात्मा) को ही प्राप्त होता है. (8/10)

सादर,

केशव राम सिंघल

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