Monday, September 9, 2019

#078 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*


#078 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*

*श्रीभगवानुवाच*
8/3
*अक्षरंब्रह्म परमं स्वभावोअध्यात्ममुच्यते !*
*भूतभावोद्भवकरो विसर्ग कर्मसञ्ज्ञितः !!*

8/4
*अधिभूतं क्षरो भावः पुरूषश्चाधिदैवतम् !*
*अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृतां वर !!*

*भावार्थ*


श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं -
परम अक्षर (अविनाशी) ब्रह्म है, परा प्रकृति (अपरिवर्तनशील दिव्य जीव) को अध्यात्म कहते हैं. जीवों के भौतिक रूप से प्रकट (होने वाली) गतिविधि कर्म है. (8/3) हे देहधारियों में श्रेष्ठ (अर्जुन) ! क्षर भाव (नाशवान पदार्थ - यह परिवर्तनशील भौतिक प्रकृति) अधिभूत है. ब्रह्माजी अधिदैव हैं और इस देह (शरीर) में मैं (परमात्मा) ही अधियज्ञ (यज्ञ का स्वामी) हूँ. (8/4)

*प्रसंगवश*

परा प्रकृति भगवान का स्वभाव है. यह अपरिवर्तनशील है. जीव परा प्रकृति है. जीव भगवान् (परमात्मा) का अंश है. जीव सदा विद्यमान रहता है.

सादर,

केशव राम सिंघल

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