Friday, September 27, 2019

# 081 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*


# 081 - *गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*


8/11
*यदक्षरं वेदविदो वंदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः !*
*यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये !!*


8/12, 13
*सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च !*
*मूर्ध्न्यधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् !!*
*ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरनमामनुस्मरन् !*
*यः प्रयाति व्यजन्देहं स याति परमां गतिम् !!*


8/14
*अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः !*
*तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः !!*


8/15
*मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् !*
*नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः !!*


*भावार्थ*

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
वेदों के ज्ञाता जिसको अक्षर या ॐ कहते हैं , संन्यास आश्रम में रहने वाले सन्यासी (वीत राग यति) जिसे प्राप्त करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह पद (बात) मैं तेरे को संक्षेप में बताऊंगा. [वीत राग यति = जिनका अंतःकरण निर्मल है और हृदय में परमात्मा को पाने की लगन है.] (8/11) इन्द्रियों के सम्पूर्ण द्वारों का संयम कर मन में हृदय में निरोध कर (अर्थात् मन को विषयों की तरफ जाने से रोककर) और प्राणों को को मस्तक में धारण कर (अर्थात् प्राणों पर अपना अधिकार कर) योगधारणा में स्थित हुआ व्यक्ति इस एक अक्षर ब्रह्म 'ॐ' का मानसिक उच्चारण और मेरा (परमात्मा का) स्मरण करता हुआ शरीर छोड़ता है, वह परम गति (अर्थात् निर्गुण-निराकार परमात्मा) को प्राप्त करता है. (8/12, 13) हे पार्थ (अर्जुन) ! अनन्य चित्तवाला जो व्यक्ति, अर्थात् जो यह विचार करे कि वह केवल परमात्मा का है और परमात्मा उसके हैं, मेरा नित्य-निरंतर स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें लगे व्यक्ति के लिए मैं (परमात्मा) सुलभता से प्राप्त हो जाता हूँ. (8/14) महात्मा (ऐसे व्यक्ति जो इन्द्रियों कासंयम कर परमात्माकी प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं) मुझे (परमात्मा को) प्राप्त कर इस संसार रूपी दुःखालय निरंतर बदलने वाले (अशाश्वत) पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते (अर्थात् मुक्ति पा लेते हैं) क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो जाती है. [दुःखालय = दुःखों का घर यह संसार है, जो भयंकर दुःख देने वाला है.] (8/15)

सादर,

केशव राम सिंघल

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