Sunday, July 31, 2016

#009 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#009 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

संक्षिप्त कथा - गीता अध्याय 2 - श्लोक 19 से 38 तक


श्रीकृष्ण अर्जुन से -
जो जीवात्मा को मारने वाला और जो जीवात्मा को मरा समझता है, वह अज्ञानी है क्योंकि आत्मा ना तो मरता है और ना ही मारा जाता है। आत्मा का ना तो किसी काल में जन्म होता है और ना ही मृत्यु। वह न तो कभी जन्मता है। आत्मा अजन्मा, सदैव रहने वाला, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर आत्मा नहीं मारा जाता। जो व्यक्ति जानता है कि आत्मा अविनाशी, अजन्मा, शाश्वत तथा कभी ना खर्च होने वाला है, वह किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है। जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र पहनता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने और बेकार शरीर को त्यागकर नया भौतिक शरीर धारण करता है। आत्मा किसी शस्त्र द्वारा खंडित नहीं किया जा सकता, न ही अग्नि द्वारा जलाया जा सकता, न ही जल द्वारा गीला किया जा सकता या वायु द्वारा सुखाया जा सकता। आत्मा अखंडित और अघुलनशील है। यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर और सदा एक सा रहने वाला है। यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय है। यह जानकर तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए। यदि तुम सोचते हो कि जीवन सदा जन्म लेता है और सदा मरता है, तो भी तुम्हारे शोक का कोई कारण नहीं है। जिसने जन्म लिया है, जसकी मृत्यु निश्चित है और उसके बाद पुनर्जन्म भी निश्चित है। इसलिए जो अटल , अपरिहार्य है, उसके विषय में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए। सभी जीव जन्म से पहले नहीं दिखते हैं और मरने के बाद भी नहीं दिखने वाले, केवल जन्म और मृत्यु के बीच में दिखते हैं, फिर इसमें चिंता करने की क्या आवश्यकता है। कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है, कोई आश्चर्य से इसका वर्णन करता है, कोई अन्य इसे आश्चर्य से सुनता है। किंतु कुछ लोग तो सुनकर भी इसको नहीं जान पाते। प्रत्येक जीव के शरीर में रहने वाला यह आत्मा सनातन (शाश्वत) है, इसको कभी मारा नहीं जा सकता। अतः तुम्हें किसी जीव के लिए शोक नहीं करना चाहिए। अपने विशिष्ट धर्म (क्षत्रिय होने) का विचार करते हुए तुम्हे विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्म-युद्ध से बढ़कर कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है। वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर स्वतः मिलते हैं, जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के द्वार खुले मिलते हैं। यदि तुम इस धर्म-युद्ध को नहीं लड़ोगे तो अपने कर्तव्य की उपेक्षा के कारण तुम्हें पाप लगेगा और तुम अपना यश (कीर्ति, सम्मान) खो बैठोगे। लोग सफैव तुम्हारे अपयश का बखान करते रहेंगे और सम्मानित पुरुष के लिए अपयश मृत्यु से भी बढ़कर है। तुम्हारे नाम और यश को सम्मान देने वाले योद्धा सोचेंगे कि भय के कारण तुमने युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे तुम्हें तुच्छ मानेंगे। तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कठोर शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारे सामर्थ्य का मजाक बनाएंगे। इससे अधिक दुःख क्या होगा? तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे और यदि जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का आनंद प्राप्त करोगे। इसलिए दृढ़ संकल्प के साथ खड़े होकर युद्ध करो। सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय पर विचार किए बिना युद्ध के लिए युद्ध करो। ऐसा करने पर तुम्हें कभी पाप नहीं लगेगा।

शुभकामना सहित,

केशव राम सिंघल

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