Saturday, July 30, 2016

#005 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#005 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*श्रीमद्भगवद्गीता संक्षिप्त कथा - अध्याय 2 - श्लोक 1 से 9*


संजय युद्ध भूमि में जो कुछ घटित हो रहा है, उसका वर्णन धृष्टराष्ट्र से करते हुए कहता है - करुणा से भरे, शोकग्रस्त और आँखों में पानी भरे अर्जुन को देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा - है अर्जुन! तुम्हारे मन में यह अज्ञान कैसे आया? यह तुम्हारे लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं है। तुम तो जीवन के मूल्य को जानते-समझते हो। इस हीन नपुंसकता और हृदय की कमजोरी को त्यागकर युद्ध के लिए तैयार होओ। यह सुनकर अर्जुन कहता है - हे मधुसूदन ! मैं युद्धभूमि में किस तरह भीष्म और द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर अपना बाण चलाऊं? जो मेरे गुरु हैं, उन्हें मारकर जीने की अपेक्षा भीख मांगकर खाना अच्छा है। हमारे लिए क्या श्रेष्ठ है - उनको जीतना या उनके द्वारा जीते जाना। यदि हम कौरवों का वध कर देते हैं तो हमें जीवित रहने की आवश्यकता नहीं है। मैं दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चुका हूँ। मेरे लिए क्या श्रेयस्कर है? मैं आपका शिष्य हूँ, आपके शरणागत हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन कर मुझे उपदेश दें। मुझे कोई उपाय सूझ नहीं रहा, जिससे मेरा शोक दूर हो सके। इस पूरी पृथ्वी का राज पाने के बाद भी मेरा शोक दूर नहीं हो सकेगा। 'हे गोविन्द! मैं युद्ध नहीं करूंगा' कहकर अर्जुन चुप हो गया।

पृष्ठभूमि

अर्जुन सदाचार के प्रति जागरूक है और युद्धभूमि में युद्ध करने से पहले एक घमासान विचार-युद्ध उसके मस्तिष्क में चलने लगता है और वह अनिश्चय की स्थिति में आ जाता है।

वह मोह के कारण युद्ध करना नहीं चाह रहा है, पर मन में वह अनिश्चय को भी महसूस कर रहा है, इसलिए क्या उचित-अनुचित है यह जानने का उत्सुक भी है और इसलिए श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी दुविधा को रखते हुए मार्गदर्शन की इच्छा व्यक्त करता है।

सही ज्ञान ही हमारी सभी समस्याओं का एकमात्र हल है।
Right knowledge is ultimate solution to all our problems.

हमें सही ज्ञान को प्राप्त करने का उत्सुक होना चाहिए।
We should be ready to seek always the right knowledge.


शुभकामना सहित,

केशव राम सिंघल

No comments: