गायत्री मंत्र - अर्थ, महत्त्व और जीवन संदेश
चित्र साभार NightCafe
गायत्री मंत्र वेदों का महामंत्र है—प्रकाश, ज्ञान और सद्बुद्धि की ओर ले जाने वाला पथदर्शक। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मकता, स्पष्टता और संतुलन प्रदान करता है।
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
Om Bhur Buvah Swah
Tatsavitur Varenyam
Bhargo Devasya Dheemahi
Dhiyo Yo Nah Prachodayat.
भावार्थ
हम उस परमात्मा का ध्यान करें—जो प्राणस्वरूप है, दुःखों का नाश करने वाला है, सुख और शांति का दाता है, श्रेष्ठ और तेजस्वी है, तथा पापों को नष्ट करने वाला है। हे प्रभु! आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें और हमारे अंतःकरण को प्रकाशमान करें।
मंत्र के पदों का सरल जीवनोपयोगी अर्थ
ॐ (अ + उ + म्) –
अ = आत्मानंद में रमण करना
उ = उन्नति की ओर बढ़ना
म् = महानता की ओर अग्रसर होना
अर्थात्: आत्मानंद से प्रेरित होकर उन्नति और महानता की ओर बढ़ते रहना।
भूः – हम शरीर नहीं, आत्मा हैं—प्राण हैं।
भुवः – अपने कर्मों और कर्तव्यों को सद्कर्मों से पूरा करना।
स्वः – मन को भीतर स्थिर कर आत्म-नियंत्रण विकसित करना।
तत् – जीवन और मृत्यु की अनिवार्यता को समझना; वास्तविकता को स्वीकारना।
सवितुः – सूर्य के समान तेजस्वी, उज्ज्वल और ऊर्जावान बनना।
वरेण्यं – अशुभ चिंतन को त्यागकर श्रेष्ठ चिंतन को अपनाना।
भर्गः – पापों से बचते हुए निष्पाप जीवन की ओर अग्रसर होना।
देवस्य – अशुद्ध दृष्टिकोण से बचकर शुद्ध, दिव्य विचारों को अपनाना।
धीमहि – सद्गुणों को अपने भीतर धारण करना।
धियो – विवेक का महत्त्व समझकर विवेकवान बनना।
यो नः – आत्मसंयम और परमार्थ के दिव्य मार्ग को अपनाना।
प्रचोदयात् – हे भगवान! हमारी बुद्धि को सद्मार्ग पर प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र केवल जप नहीं—जीवन का मार्गदर्शन है। यह सिखाता है कि मन शुद्ध हो, विचार श्रेष्ठ हों, कर्म नैतिक हों और जीवन प्रकाशमय।
सादर,
केशव राम सिंघल
(संकलित)
