ॐ की महत्ता
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
ॐ का बहुत महत्त्व है। अथर्ववेद के उपनिषद माण्डूक्योपनिषद में ॐ को ब्रह्म और चेतना का रूप माना गया है। ॐ को ओउम् या ओंकार भी कहा जाता है। सनातन धर्म में ॐ एक पवित्र ध्वनि और आध्यात्मिक प्रतीक है। ॐ की ध्वनि एक शक्तिशाली कम्पन पैदा करती है, जिसका उपयोग हम अपने मन को केंद्रित करने और ध्यान की स्थिति में पहुँचने के लिए कर सकते हैं। इसकी ध्वनि हमारे मन और शरीर पर सकारात्मक और शांत प्रभाव पैदा करती है। ॐ की महिमा अपार है। ॐ की ध्वनि का निर्माण 'अ', 'उ' और 'म्' इन तीन अक्षरों से हुआ है। माण्डूक्योपनिषद के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अ + उ + म् + मौन के चार कारक सिद्धांतों पर है। 'अ' अर्थात यह भूलोक और स्थूल दृश्य जगत। ॐ का 'अ' शुरुआत या सृजन का आधार है। 'उ' अर्थात सूक्ष्म जगत, यही ब्रह्माण्ड के संरक्षण का आधार है। 'म्' अर्थात सुपुप्ति से सम्बन्ध रखने वाले अदृश्य, अगोचर अथवा जाग्रत अवस्था में जिसका ज्ञान बुद्धि से नहीं हो सकता और जहाँ बुद्धि की पहुँच नहीं है और जो मन, बुद्धि और वाणी से परे है। 'म्' ही ब्रह्माण्ड के अंत का प्रतीक भी है। एक ॐ और दूसरे ॐ की ध्वनि के बीच जो विश्राम है, वही मौन है। मौन जो मन को केंद्रित करता है। यही अनंत विराम है, कोई अक्षर नहीं, कोई ध्वनि नहीं। इसी में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। हम कह सकते हैं कि ॐ सर्व का ही प्रतिरूप है। ॐ ही प्राण, बुद्धि और विवेक का आधार स्तम्भ है। आदि से अंत तक सभी कुछ ॐ के अंतर्गत हैं।
बाइबिल में कहा गया है की सृष्टि की आदि में शब्द था, यह शब्द ब्रह्म के साथ ही था और यह शब्द ही ब्रह्म भी था। (In the beginning there was a word, the word was with God and the word was God.) अपनी प्रार्थना के अंत में ईसाई 'अमेन' (Amen) शब्द का प्रयोग करते हैं। मुसलमान अपनी प्रार्थना (नमाज) में 'आमीन' (Aameen) कहा करते हैं। ये 'अमेन' और 'आमीन' भी ॐ के रूपांतर मात्र हैं। "सार-संक्षेप - ॐ रहस्य" पर पिछला लेख क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
सादर,
केशव राम सिंघल
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