Saturday, August 2, 2025

अंतः अस्ति आरम्भः

अंतः अस्ति आरम्भः

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कुछ दिन पूर्व मैंने एक व्यक्ति की भुजा पर अंकित एक अद्भुत वाक्य देखा— “अंतः अस्ति आरम्भः”। यह छोटा-सा कथन अपने भीतर गहरी दार्शनिक गूँज समेटे हुए है—अर्थात, अंत ही शुरुआत है।


हर अंत किसी नए आरंभ का कारण बनता है। जैसे रात का अंत सुबह के आगमन का संदेश है, वैसे ही मृत्यु के पश्चात जन्म—जीवन-चक्र की नई यात्रा का आरंभ है। प्रकृति और जीवन में निरंतर परिवर्तन, नवीनीकरण और पुनः आरंभ ही शाश्वत नियम हैं। कुछ भी स्थायी नहीं; हर अंत में ही नई संभावना, नई ऊर्जा, और नए क्षितिज छिपे होते हैं।


मानसिक, भावनात्मक या भौतिक स्तर पर जो समाप्त होता है, उसी की खाली जगह में कोई नई शुरुआत जन्म लेती है। इसलिए अंत को केवल हानि, दुःख या विदाई के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे नए मार्ग, अवसर और विकास के द्वार के रूप में स्वीकार करना चाहिए।


व्यक्तिगत जीवन में जब नौकरी, संबंध या जीवन का कोई चरण समाप्त होता है, तो प्रायः हम दुख, डर या खालीपन से घिर जाते हैं। परंतु, यही समाप्ति नए लक्ष्य, नई मित्रता, नया व्यवसाय, नई नौकरी या नई पहचान की नींव रख सकती है। हर बदलाव हमें जीवन में कुछ नया देखने, सीखने और बढ़ने का अवसर देता है।


प्रकृति में भी यही क्रम चलता है। पतझड़ में जब वृक्ष अपनी पत्तियाँ खो देता है, तो लगता है मानो उसकी संपन्नता समाप्त हो गई हो। किंतु यही पतझड़ नई बहार, नई कोपल और नए जीवन का संकेत बनकर आता है। सूर्यास्त के बाद अंधकार छा जाता है, किंतु उसी अंधकार की गोद में अगली सुबह के रंग पलते हैं।


आध्यात्मिक दृष्टि से मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि आत्मा की नई यात्रा का प्रारंभ माना गया है। यहीं से या तो पुनर्जन्म का मार्ग खुलता है या मोक्ष का द्वार। इस प्रकार, “अंत” केवल परिवर्तन है—रूप का परिवर्तन, अवस्था का परिवर्तन।


अतः “अंतः अस्ति आरम्भः" केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ सत्य और दार्शनिक सारांश है— हर अंत में एक नई शुरुआत छुपी होती है।


सादर, 

केशव राम सिंघल 

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