पौराणिक कथा पुनर्लेखन
ब्राह्मण का अभिमान और मोक्ष का मार्ग
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
प्राचीन समय की बात है। एक ब्राह्मण तप और मोक्ष की लालसा में अपने वृद्ध माता-पिता को अकेला छोड़कर वन चला गया। वहाँ वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तपस्या करने लगा। कई दिन बीत गए। एक दिन उसी वृक्ष पर बैठा एक पक्षी, अनजाने में ब्राह्मण के ऊपर बीट कर गया। ब्राह्मण को बहुत क्रोध आया। उसने गुस्से से पक्षी की ओर देखा — उसी क्षण वह पक्षी जलकर भूमि पर गिर पड़ा।
यह देखकर ब्राह्मण को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया — "मेरे तप में इतनी शक्ति है!"
कुछ दिन बाद वह एक गाँव में भिक्षा माँगने पहुँचा। अपने से बड़ों की सेवा-सुश्रुवा में व्यस्त एक गृहिणी ने जब तुरंत भिक्षा नहीं दी, तो ब्राह्मण ने उसी क्रोध से उसे देखने का प्रयास किया। परंतु गृहिणी ने शांत स्वर में कहा, "महाराज, मैं वह पक्षी नहीं हूँ जो आपके क्रोध से भस्म हो जाऊँ।"
यह सुनकर ब्राह्मण चौंका और बोला, "हे देवी! आपको यह बात कैसे ज्ञात हुई?"
गृहिणी ने उत्तर दिया, "महाराज, कृपया भिक्षा ग्रहण करें। मेरे पास विवाद का समय नहीं है। यदि आप जानना चाहें, तो गाँव के बाहर रहने वाले चाण्डाल के पास जाइए।"
आश्चर्यचकित ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। चाण्डाल ने उसका आदर किया और कहा, "मुझे मालूम है कि आपको यहाँ क्यों भेजा गया है। परंतु मैं इस समय व्यस्त हूँ। आप तुलाधार नामक वैश्य के पास जाइए, वह आपको मार्ग बताएगा।"
ब्राह्मण तुलाधार वैश्य के पास पहुँचा। वह व्यापार में व्यस्त था, परंतु ब्राह्मण को देखकर मुस्कुराया और बोला, "आपको सत्य जानने की इच्छा है तो अद्रोहक ऋषि के पास जाइए। वही आपको सच्चा मार्ग बताएँगे।"
ब्राह्मण जब अद्रोहक ऋषि के पास पहुँचा, तो उन्होंने शांत भाव से कहा, "महाराज, आपका धर्म अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करना था। आपने उन्हें त्यागकर तपस्या की, पर यह मोक्ष का मार्ग नहीं है। तपस्या अहंकार के साथ नहीं की जाती।"
उन्होंने आगे कहा, "मन, वचन और कर्म से माता-पिता की सेवा ही आपके लिए सच्चा धर्म है। जब आप अपना कर्तव्य पूरी श्रद्धा से निभाएँगे, जब आप अपने अभिमान को त्यागेंगे, तब ही मोक्ष की दिशा खुलेगी। ईश्वर की सच्ची स्तुति वहीं होती है जहाँ धर्म का पालन हो।"
ब्राह्मण को आत्मबोध हुआ। उसने अपना अहंकार त्यागा और लौटकर अपने माता-पिता की सेवा में लग गया।
मेरी सीख
कर्तव्यपालन और विनम्रता ही मोक्ष का मार्ग है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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