Wednesday, May 2, 2018

#075 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#075 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 7 - दिव्य ज्ञान*


7/27
*इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंदमोहेन भारत !*
*सर्वभूतानि सम्मोहं संते यान्ति परन्तप !!*


7/28
*येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् !*
*ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढ़व्रताः !!*


7/29
*जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये !*
*ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् !!*


7/30
*साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः !*
*प्रयाणकालेअपिते च मां विदुर्युक्तचेतसः !!*


*भावार्थ*

श्रीकृष्ण अर्जुन से -
हे शत्रुओं के विजेता, हे भरतवंशी (अर्जुन) ! राग और द्वेष से उत्मन्न होने वाले द्वंद्व-मोह से मोहित सम्पूर्ण प्राणी आनादिकाल से संसार में मोह (जन्म-मरण) को प्राप्त हो रहे हैं. (7/27) परन्तु पुण्य में लगे (पुण्यकर्मा) जिन व्यक्तियों के पाप समाप्त हो गए हैं, वे द्वंद्व-मोह से रहित व्यक्ति दृढ होकर मेरा भजन करते हैं. (7/28) बुढ़ापे और मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए जो व्यक्ति मेरा आश्रय लेकर कोशिश करते हैं, वे ब्रह्म, सम्पूर्ण अध्यात्म और सम्पूर्ण कर्म को जान जाते हैं. (7/29) जो व्यक्ति अधिभूत (भौतिक स्थूल सृष्टि), अधिदैव (ब्रह्माजी) और अधियज्ञ (भगवान् विष्णु) सहित मुझे जानते हैं, वे मुझमें लगे हुए चित्तवाले व्यक्ति अंतकाल में भी मुझे ही जानते हैं अर्थात् वे मुझे ही प्राप्त होते हैं. (7/30)

*प्रसंगवश*

संसार-बंधन का मूल कारण अज्ञान अर्थात् राग-द्वेष में बँधना है. राग-द्वेष मिटने पर मनुष्य सुखपूर्वक संसार से मुक्त हो जाता है.

संतो के कहा कि डेढ़ ही पाप हैं और डेढ़ ही पुण्य हैं. भगवान (परमात्मा) से विमुख होना पूरा पाप है और दुर्गुण-दुराचारों में लगना आधा पाप है, इसी प्रकार भगवान (परमात्मा) में लगना (लीन) होना पूरापुण्य है और सदगुण-सदाचारों में लगना आधा पुण्य है. यदि हम भगवान की शरण लेंगे तो हमारे पापों का अंत निश्चित है.

भौतिक स्थूल सृष्टि जो दिखती है, इसमें तमोगुण की प्रधानता है. यह भगवान के बिना नहीं हो सकती. भौतिक स्थूल सृष्टि की स्वतन्त्र सत्ता नहीं है. यह संसार भगवत्स्वरूप है. सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्माजी में रजोगुण की प्रधानता है. भगवान (परमात्मा) ही ब्रह्माजी के रूप में हैं. भगवान विष्णु अन्तर्यामी सर्वव्यापी हैं, इनमें सत्त्वगुण की प्रधानता है.

जब ये भौतिक सृष्टि नहीं थी, तब भी भगवान थे. जब ये भौतिक सृष्टि नहीं रहेगी तब भी भगवान रहेंगे. भगवान अनादिकाल से हैं, अभी भी हैं और आगे भी हरदम रहेंगे.

उपासना की दृष्टि से भगवान के दो रूपों का वर्णन आता है. एक सगुण (साकार) और दूसरा निर्गुण (निराकार). सगुण की उपासना करने वाले सगुण-साकार मानकर उपासना करते हैं. निर्गुण कीउपासनाकरने वाले भगवान को सम्पूर्ण संसार में व्यापक समझते हुए उनका चिंतन करते हैं. वास्तव में भगवान सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार सब कुछ हैं और इनसे परे भी हैं.

सादर,
केशव राम सिंघल


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