Saturday, April 13, 2013

श्रीलंका की स्थिरता के लिए अन्तत: जरुरी




श्रीलंका के रक्षा सचिव गोत्बया राजपक्षे श्रीलंका में ‍तमिल समस्या के लिए मुख्य रूप से भारत को दोषी ठहराते हैं. उनका मानना है कि श्रीलंका में 30 साल तक ‍तमिल अलगाववादियों ने जो युद्ध घसीटा, उसके लिए भारत दोषी है. उनका कहना है कि श्रीलंका में आंतकवाद पैदा करने के लिए भारत कभी भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता. उनके अनुसार भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की भूलों में से एक भूल श्रीलंकाई ‍तमिल युवाओं को हथियार देना था. गोत्बया राजपक्षे कहते हैं कि जो संघर्ष के अन्तिम दिनों के दौरान कथित अत्याचार के लिए श्रीलंका पर जवाबदेही की माँग करते हैं, वे श्रीलंका में आतंकवाद की उत्पत्ति पर चुप हैं. साथ ही वे इस माँग को सामने रखते हैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारतीय हस्तक्षेप के साथ शुरू हुए मुद्दे की व्यापक जाँच पर विचार करना चाहिये. वे श्रीलंका में मानव अधिकारों के हनन पर कहते है कि भारत को श्रीलंका पर अपनी उँगली उठाने से पूर्व भारत, विशेषकर कश्मीर, में मानव अधिकारों के उल्लंघन को ठीक करना चाहिये.


भारत पर आरोप लगाकर श्रीलंका सरकार बचना चाहती है और उन्हें यह रास्ता बहुत ही आसान लगता है. लेकिन भारत के राज्य मन्त्री वी नारायनसामी ने श्रीलंका के रक्षा सचिव के दावे को नकारते हुए कहा कि यह अस्वीकार्य है कि श्रीलंका में आतंकवाद पैदा करने के लिए भारत जिम्मेदार था. उन्होंने कहा कि श्रीलंका में आतंकवाद के लिए श्रीलंका जिम्मेदार है. तमिलों ने आतंकवाद का रास्ता इसलिए चुना क्योंकि श्रीलंका ने उनके अधिकारों को इनकार कर दिया था. उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने विश्व में कहीं भी आतंकवाद गतिविधियों का किसी तरह का समर्थन नहीं किया. उन्होंने कहा कि जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा और राजीव ने तमिलों का समर्थन किया. हमने राजीव (जिनकी लिट्टे के सदस्यों ने हत्या कर दी) को खो दिया, जिन्होंने तमिलों की सहायता के लिए भारतीय शान्ति सेना भेजी. राजपक्षे का बयान अस्वीकार्य है. श्रीलंका आतंकवाद के लिए ख़ुद जिम्मेदार है. तमिलों ने आतंकवाद इसलिए अपनाया क्योंकि उनके अधिकारों से उन्हें वंचित रखा गया था. तमिलों की रक्षा करना भारत का कर्तव्य है, वे जहाँ भी हों. राज्य मन्त्री ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत ने श्रीलंकाई सेना द्वारा कथित युद्ध अपराधों के लिए स्वतंत्र और विश्वसनीय जाँच के लिए दवाब डाला था.


यदि उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण किया जाए तो यह बात सामने आती है कि श्रीलंका सरकार श्रीलंका द्वारा किए मानवाधिकार उल्लंघन से इनकार कर श्रीलंका में आतंकवाद के लिए भारत को जिम्मेदार मानती है. सबसे दु:खद बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के बावजूद श्रीलंका सरकार पर कोई असर लगता नहीं दिख रहा. श्रीलंका में पत्रकार और मीडिया भी स्वतंत्र नहीं हैं. पत्रकार डरे हुए हैं, ‍तमिल समाचारपत्र कार्यालय पर बार-बार हमले हो रहे हैं. श्रीलंका में ‍तमिल टीवी की न्यूज रीडर सुश्री रथिमोहन लोकिनि, जो फिलहाल ‍तमिल शरणार्थी के रूप में दुबई में है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निवेदन कर रहीं हैं कि उन्हें वापिस श्रीलंका नहीं भेजा जाए. उसे डर है कि श्रीलंका में उसे यातना सहनी पड़ सकती है या उसे मार दिया जाए.


श्रीलंका में स्थितियाँ तब तक नहीं सुधर सकती जब तक श्रीलंका सरकार अपने देश में सभी धर्मों के नागरिकों को सम्मान और गरिमा से जीवन बिताने का दायित्व सही अर्थों में नहीं निभायेगी. यदि श्रीलंका दु:ख और पीड़ा से बचना चाहता है तो श्रीलंका को युद्ध अपराधों के लिए युद्ध के बाद सुलह के लिए गंभीर होने की जरूरत है और यही श्रीलंका की स्थिरता के लिए अन्तत: जरुरी है.


- केशव राम सिंघल
(लेखक राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं और 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.)

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