Monday, April 15, 2013

श्रीलंका में प्रेस की आजादी




मैंने अपने पिछले एक लेख में लिखा कि श्रीलंका में पत्रकार और मीडिया स्वतंत्र नहीं हैं. पत्रकार डरे हुए हैं, ‍तमिल समाचारपत्र कार्यालय पर बार-बार हमले हो रहे हैं. श्रीलंका में ‍तमिल टीवी की न्यूज रीडर सुश्री रथिमोहन लोकिनि, जो फिलहाल ‍तमिल शरणार्थी के रूप में दुबई में है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निवेदन कर रहीं हैं कि उन्हें वापिस श्रीलंका नहीं भेजा जाए. उसे डर है कि श्रीलंका में उसे यातना सहनी पड़ सकती है या उसे मार दिया जाए. दुनियाभर में पत्रकारों के बचाव के लिए बनी समिति 'कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नेलिस्त्स' (Committee to Protect Journalists) ने तमिल टीवी की न्यूज रीडर सुश्री रथिमोहन लोकिनि के बारे में संकेत दिया है कि उसे जबर्दस्ती वापिस श्रीलंका नहीं भेजा जायेगा. यह बड़ी राहत की बात है.

अभी हाल ही में तीन हथियारबंद लोगों ने एक ‍तमिल भाषा के अखबार 'उथयन' की छपाई मशीन को आग लगा दी. यह इस अखबार के कार्यालय पर इस वर्ष में पाँचवाँ हमला है और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा 21 मार्च 2013 को मानवाधिकार उल्लंघन का प्रस्ताव पारित होने के बाद यह दूसरा हमला है. इस सम्बन्ध में 'उथयन' के संपादक थेवनायागम प्रेमनाथ ने बताया कि हेलमेट पहने तीन लोगों ने मुद्रण अनुभाग में 'उथयन' के कर्मचारियों को धमकी दी और मुख्य छपाई मशीन को आग लगा दी. यहाँ उल्लेखनीय है कि यह अखबार श्रीलंका के उत्तरी भाग जाफ्ना में प्रमुख अखबार है. इससे पहले भी एक अज्ञात समूह के लोगों ने उथयन कार्यालय पर हमला किया था और पाँच कर्मचारियों को घायल कर दिया था. असल में देखा जाए तो पिछले कई हमलों के बाद उचित कार्रवाई करने की श्रीलंका सरकार की विफलता के परिणामस्वरूप छपाई मशीन को आग लगाने की घटना हुई और अखबार के खिलाफ हिंसा जारी है. इस सम्बन्ध में पुलिस प्रवक्ता कहते हैं कि जाँच चल रही है और रक्षा मंत्रालय से जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मीडिया केन्द्र के महानिदेशक यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि प्रारंभिक जाँच से यह संकेत मिला कि यह हमला सरकार की छवि खराब करने के लिए अंदरूनी कार्य है. इससे एक बात साफ़ दिख रही है कि श्रीलंका के जाफना क्षेत्र में हिंसा की घटनाएँ श्रीलंकाई तमिल वोटरों को डराने का एक तरीका हो सकता है क्योंकि अधिकतर श्रीलंकाई ‍तमिल वोटर सरकार के विरोधी पक्ष के समर्थक हैं.

किसी भी लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी अत्यन्त जरुरी है और इसके लिए पत्रकारों की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व होता है पर श्रीलंका सरकार इस ओर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है. यह चिन्ता की बात है. भय के माहौल से बचने के लिए, दूसरे देशों में शरण चाहने वाले श्रीलंकाई तमिलों की संख्या बढ़ रही है और अनिश्चित भविष्य से बाध्य श्रीलंकाई ‍तमिल किसी भी तरह, यहाँ तक कि समुद्र में मुश्किल से चलने वाली नौकाओं, से श्रीलंका से दूसरे देशों में पलायन कर चुके हैं और कर रहे हैं. अब यह बहुत ही जरुरी है कि अंतरराष्ट्रीय दवाब बनाकर श्रीलंका को लोकतांत्रिक तरीके से काम करने लिए प्रेरित किया जाय, ताकि भय का माहौल समाप्त हो और श्रीलंका से पलायन रुके.

- केशव राम सिंघल

(लेखक राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं और 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.)

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