Tuesday, April 16, 2013

कच्चातीवु (Kachchatheevu) द्वीप पर भारत में राजनीति





कच्चातीवु द्वीप समझौता 1974 को रद्द करने की माँग बढ़ती जा रही है और भारत में राजनीति ते़ज हो रही है. जयललिता के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने पिछले माह ही केन्द्र सरकार से माँग की कि 1974 के उस समझौते को रद्द कर दिया जाए, जिसके तहत कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. अब करुणानिधि के नेतृत्व वाली द्रुमुक समर्थित '‍तमिल ईलम समर्थक संगठन' (TESO - Tamil Eelam Supporters Organization) की बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि द्रुमुक सरकार के विरोध के बावजूद 1974 में यह छोटा सा द्वीप भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को सौंप दिया गया. इस सम्बन्ध में इस संगठन के समर्थकों का कहना है कि जब भी देश का कोई हिस्सा दुसरे देश को सौपा जाता है तो इसे संसद के दोनों सदनों की मंजूरी के बाद कानून के माध्यम से किया जाता है. उनके अनुसार संसद में दोनों सदनों की मंजूरी नहीं ली गई, अत: द्वीप का श्रीलंका को सौपना कानूनी रूप से मान्य नहीं है. अत: समझौता रद्द करने और यह घोषित करने के लिए कि कच्चातीवु भारत का हिस्सा है, इस संगठन ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है.

जो लोग कच्चातीवु समझौता 1974 रद्द करवाने के पक्षधर है, वे यह भी कहते हैं कि 1974 के समझौते में दोनो देशों के मछुआरों को कच्चातीवु द्वीप क्षेत्र से मछली पकड़ने का पारंपरिक अधिकार है और समझौते के विपरीत श्रीलंका तमिलनाडु के मछुआरों को वहां से मछली पकड़ने से रोक रहा है, उनके मछली पकड़ने के जाल को नुकसान पहुँचाता है और उन्हें गिरफ्तार करने में भी नहीं हिचकता.

भारत की राजनीति में यह मामला उलझता जा रहा है. हमे इस सम्बन्ध में तथ्यों को सकारात्मक और निष्पक्ष रूप से समझने की जरूरत है. कच्चातीवु द्वीप एक छोटा सा द्वीप है और 1974 तक इस द्वीप के नियंत्रण पर विवाद रहा. अँगरेजों के शासन के दौरान इस द्वीप का नियंत्रण दोनों देशों की सरकारें करती थी, क्योंकि दोनों देश अँगरेजों के शासन के अधीन ही थे.यह द्वीप सशर्त आधार पर 1974 में भारत ने श्रीलंका को दे दिया. इस द्वीप पर एक कैथोलिक चर्च है तथा श्रीलंका सरकार ने इसे एक पवित्र क्षेत्र घोषित किया हुया है. इस द्वीप पर पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है, कोई आश्रय नहीं है, भोजन नहीं है, देखने के लिए समुद्र के नीले पानी को देखने के अलावा भी कुछ नहीं है. हालाँकि चर्च त्यौहार तीन दिनों तक चलता है, जिसमे भारत और श्रीलंका से पादरी जाते हैं और देशी और मशीनी नावों से तीर्थयात्री चर्च त्यौहार के दौरान वहां पहुँचते हैं.

1974 समझौते के अधीन अब कच्चातीवु श्रीलंका जल क्षेत्र में आता है और भारतीय मछुआरों को द्वीप के आसपास मछली पकड़ने का अधिकार नहीं है. भारतीय मछुआरों को अपना जाल सुखाने और चर्च के उपयोग की अनुमति दी गई थी. यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ़ दी सी (United Nations Convention on Law of the Sea) के अधीन 1976 में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के परिसीमन समझौते द्वारा अब भारतीय मछुआरों को जाल सुखाने और चर्च के उपयोग का अधिकार भी नहीं है. इस प्रकार 1974 का वह् समझौता जो अधिकार भारतीय मछुआरों को प्रदान करता था, अब समुद्री सीमा रेखा के परिसीमन से समाप्त हो गया.

हालाँकि इस लेख का लेखक कानूनी मामलों का अच्छा जानकार तो नहीं है, पर एक बात बिलकुल साफ़ है कि किसी एक देश की अदालत कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता कैसे बदल सकती या रद्द कर सकती है. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समझौता अंतरराष्ट्रीय अदालत में या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही निपटाए जा सकते हैं, ऐसे में किसी संगठन का सुप्रीम कोर्ट जाने से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा, समझ के बाहर है.

- केशव राम सिंघल

(लेखक राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं और 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.)

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