महाभारत के प्रमुख पात्र श्रीकृष्ण — नीति, मित्रता और जीवन-दर्शन के प्रतीक
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
महाभारत के प्रमुख पात्र हैं श्रीकृष्ण
नीति, मित्रता और जीवन-दर्शन के प्रतीक।
कुरुक्षेत्र रण में निभाई अद्भुत भूमिका,
रहे अर्जुन के सारथी, कूटनीतिज्ञ और मित्र।
मथुरा के कारागार में हुआ था उनका जन्म,
गोकुल-वृंदावन में पले प्रेम और लीलाओं के संग।
माखनचोरी और रास की अनेक मधुर कहानी,
राक्षसों पर विजय की गाथाएँ सुनी माँ की वाणी।
पर केवल चमत्कार नहीं थे श्रीकृष्ण,
वे थे नीति, धर्म और विवेक के दृष्टा।
उन्होंने धर्म की रक्षा का लिया था संकल्प,
उनके निर्णयों में था न्याय का अडिग विकल्प।
जब कौरवों ने पांडवों को दिया अन्यायपूर्ण वनवास,
कृष्ण बने आशा की किरण, धर्म की विशेष आस।
द्रौपदी के अपमान पर उठाई धर्म की वाणी,
सभा में गूँजी मूक दर्शकों की व्यथा पुरानी।
शांति का प्रयास श्रीकृष्ण ने किया बारंबार,
जब न माने कौरव तो खुला युद्ध का द्वार।
धर्मस्थापना को उन्होंने चुना रण का मार्ग,
अर्जुन को दी गीता — जीवन का सर्वोत्तम सार।
जब अर्जुन हुआ मोह और शोक में उलझा,
तब श्रीकृष्ण ने कहा —
"कर्म करो, फल की चिंता न करो,
जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी श्रेष्ठ होगा।"
श्रीकृष्ण हैं प्रेरणा के अखंड भंडार,
सुदामा या अर्जुन – निभाई मित्रता हर बार।
हर निर्णय में धैर्य और दूरदर्शिता दिखाई,
युद्ध से पहले भी शांति की राह अपनाई।
श्रीकृष्ण का जीवन है धर्म की सजीव व्याख्या समझो सभी,
अपार शक्तिशाली होकर भी ना करो अहंकार का प्रयोग कभी।
कुछ सीखें श्रीकृष्ण से —
मित्रता निभाना एक श्रेष्ठ कला है,
धैर्य, विवेक, और कर्म से मिलती सफलता है।
धर्म और न्याय के पक्ष में अडिग रहना,
कठिन परिस्थितियों में सर्वोच्च उद्देश्य बनाना।
श्रीकृष्ण केवल पौराणिक पात्र नहीं, जीवन-दर्शन हैं,
वे दर्शन, प्रेरणा, और चेतना का यथार्थ हैं।
जब जीवन में हो द्वंद्व या हो भ्रम की घड़ी,
गीता की शिक्षाएँ बनें समाधान की कड़ी।
सादर,
केशव राम सिंघल
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