Sunday, April 22, 2018

#071 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#071 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 7 - दिव्य ज्ञान*


7/6
*एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।*
*अहं कृत्स्रस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।*


7/7
*मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।*
*मय सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।*


*भावार्थ*

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
ऐसा तुम जानो कि सभी सृष्ट पदार्थों (प्राणियों) का स्रोत इन दोनों (परा और अपरा) प्रकृतियों का संयोग ही है. मैं (भगवान) सम्पूर्ण जगत का निमित्तकारण (प्रभव) और लीन करने वाला (प्रलय) हूँ. (7/6) हे धनञ्जय (अर्जुन) ! मुझसे (भगवान से) परे अन्य कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है. यह जो हम देखते हैं वह सब कुछ (सम्पूर्ण जगत) मुझ (भगवान) में ही है, जैसे धागे में मणियाँ गुंथी रहती हैं. (7/7)

*प्रसंगवश*

यह संसार भगवान से ही उत्पन्न होता है, उसी के द्वारा रचाया-बसाया गया है और अंत में भगवान में ही लीन हो जाना है - ऐसा जानना 'ज्ञान' है. सब कुछ भगवान का स्वरूप ही है, भगवान के सिवाय दूसरा कुछ भी नहीं - ऐसा अनुभव हो जाना 'विज्ञान' है.

सादर,
केशव राम सिंघल

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