Wednesday, September 14, 2016

#027 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#027 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*

*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 3 - श्लोक 21 से 24*

*यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: !*
*स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते !!* (3/21)


*भावार्थ* - विद्वानजन जैसा आचरण करते हैं, दूसरे भी (देखकर) वैसा ही (आचरण) करते हैं. वह् जो अनुसरणीय कार्य कर देता है, दूसरे व्यक्ति उसी के अनुसार अनुसरण करते हैं.

*न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन !*
*नानवाप्तमवाप्तव्यं वार्ता एव च कर्मणि !!* (3/22)


*भावार्थ* - हे अर्जुन ! तीनों लोकों में मेरे लिए न तो कोई कर्तव्य है और न ही कोई वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्तव्यकर्म में लगा रहता हूँ.

*यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः !*
*मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वेश: !!* (3/23)


*भावार्थ* - हे अर्जुन ! क्योंकि अगर मैं किसी समय नियत कर्म ना करूँ तो यह संभव है कि सभी लोग मेरे ही मार्ग का अनुसरण करें.

*उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् !*
*संकरस्य च करता स्यामुपहन्या मिमा: प्रजा: !!* (3/24)


*भावार्थ* - यदि मैं मेरा कर्म (नियत कार्य) न करूँ तो यह लोक (अर्थात् सभी प्राणी) नष्ट हो जाएँ और मैं अवांछित लोगों को उत्पन्न करने वाला हो जाऊँ और इस समस्त प्रजा (प्राणियों) का विनाशक बन जाऊँगा.

सादर,

केशव राम सिंघल

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