Tuesday, September 13, 2016

#025 - गीता अध्ययन एक प्रयास


*#025 - गीता अध्ययन एक प्रयास*

*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*

*गीता अध्याय 3 - श्लोक 17 से 19*

*यस्त्वात्मरतिदेव स्यादात्मतृप्तश्च मानव: !*
*आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्य न विद्यते !!* (3/17)

*नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन !*
*न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः: !!* (3/18)

*तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचार !*
*असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोप्ति पूरुषन् !!* (3/19)


*भावार्थ* -

(श्रीकृष्ण अर्जुन से) -
किन्तु जो व्यक्ति अपने आप में रमने वाला (आनंद लेने वाला) और अपने आप में तृप्त और अपने आप में संतुष्ट है, उसके लिए कोई कार्य (कर्तव्य) नहीं है.

ऐसे व्यक्ति का इस संसार में ना तो कर्म करने का कोई उद्देश्य है और ना ही कर्म ना करने का भी कोई उद्देश्य है. और उसका किसी के साथ किंचित भी स्वार्थ सम्बन्ध नहीं रहता.

इसलिए तू सदैव आसक्तिरहित होकर (आसक्ति से दूर रहकर) कर्तव्य-कर्म का आचरण कर क्योंकि आसक्तिरहित होकर (आसक्ति से दूर रहकर) कर्म करने वाला व्यक्ति परमात्मा (श्रीभगवान) को प्राप्त करता है.

सादर,

केशव राम सिंघल


No comments: