Sunday, December 21, 2025

ॐ की महत्ता

ॐ की महत्ता 
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 


ॐ का बहुत महत्त्व है। अथर्ववेद के उपनिषद माण्डूक्योपनिषद में ॐ को ब्रह्म और चेतना का रूप माना गया है। ॐ को ओउम् या ओंकार भी कहा जाता है। सनातन धर्म में ॐ एक पवित्र ध्वनि और आध्यात्मिक प्रतीक है। ॐ की ध्वनि एक शक्तिशाली कम्पन पैदा करती है, जिसका उपयोग हम अपने मन को केंद्रित करने और ध्यान की स्थिति में पहुँचने के लिए कर सकते हैं। इसकी ध्वनि हमारे मन और शरीर पर सकारात्मक और शांत प्रभाव पैदा करती है। ॐ की महिमा अपार है। ॐ की ध्वनि का निर्माण 'अ', 'उ' और 'म्' इन तीन अक्षरों से हुआ है। माण्डूक्योपनिषद के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अ + उ + म् + मौन के चार कारक सिद्धांतों पर है। 'अ' अर्थात यह भूलोक और स्थूल दृश्य जगत। ॐ का 'अ' शुरुआत या सृजन का आधार है। 'उ' अर्थात सूक्ष्म जगत, यही ब्रह्माण्ड के संरक्षण का आधार है। 'म्' अर्थात सुपुप्ति से सम्बन्ध रखने वाले अदृश्य, अगोचर अथवा जाग्रत अवस्था में जिसका ज्ञान बुद्धि से नहीं हो सकता और जहाँ बुद्धि की पहुँच नहीं है और जो मन, बुद्धि और वाणी से परे है। 'म्' ही ब्रह्माण्ड के अंत का प्रतीक भी है। एक ॐ और दूसरे ॐ की ध्वनि के बीच जो विश्राम है, वही मौन है। मौन जो मन को केंद्रित करता है। यही अनंत विराम है, कोई अक्षर नहीं, कोई ध्वनि नहीं। इसी में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। हम कह सकते हैं कि ॐ सर्व का ही प्रतिरूप है। ॐ ही प्राण, बुद्धि और विवेक का आधार स्तम्भ है। आदि से अंत तक सभी कुछ ॐ के अंतर्गत हैं।  

बाइबिल में कहा गया है की सृष्टि की आदि में शब्द था, यह शब्द ब्रह्म के साथ ही था और यह शब्द ही ब्रह्म भी था। (In the beginning there was a word, the word was with God and the word was God.) अपनी प्रार्थना के अंत में ईसाई 'अमेन' (Amen) शब्द का प्रयोग करते हैं।  मुसलमान अपनी प्रार्थना (नमाज) में 'आमीन' (Aameen) कहा करते हैं।  ये 'अमेन' और 'आमीन' भी ॐ के रूपांतर मात्र हैं। "सार-संक्षेप - ॐ रहस्य" पर पिछला लेख क्लिक कर पढ़ सकते हैं।  

सादर,
केशव राम सिंघल 


Monday, December 1, 2025

गायत्री मंत्र - अर्थ, महत्त्व और जीवन संदेश

गायत्री मंत्र - अर्थ, महत्त्व और जीवन संदेश









चित्र साभार NightCafe 

गायत्री मंत्र वेदों का महामंत्र है—प्रकाश, ज्ञान और सद्बुद्धि की ओर ले जाने वाला पथदर्शक। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मकता, स्पष्टता और संतुलन प्रदान करता है।


गायत्री मंत्र 


ॐ भूर्भुवः स्वः

तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि

धियो यो नः प्रचोदयात्।


Om Bhur Buvah Swah

Tatsavitur Varenyam

Bhargo Devasya Dheemahi

Dhiyo Yo Nah Prachodayat. 


भावार्थ 


हम उस परमात्मा का ध्यान करें—जो प्राणस्वरूप है, दुःखों का नाश करने वाला है, सुख और शांति का दाता है, श्रेष्ठ और तेजस्वी है, तथा पापों को नष्ट करने वाला है। हे प्रभु! आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें और हमारे अंतःकरण को प्रकाशमान करें।


मंत्र के पदों का सरल जीवनोपयोगी अर्थ 


ॐ (अ + उ + म्) –

अ = आत्मानंद में रमण करना

 उ = उन्नति की ओर बढ़ना

 म् = महानता की ओर अग्रसर होना

  अर्थात्: आत्मानंद से प्रेरित होकर उन्नति और महानता की ओर बढ़ते रहना।


भूः – हम शरीर नहीं, आत्मा हैं—प्राण हैं।


भुवः – अपने कर्मों और कर्तव्यों को सद्कर्मों से पूरा करना।


स्वः – मन को भीतर स्थिर कर आत्म-नियंत्रण विकसित करना।


तत् – जीवन और मृत्यु की अनिवार्यता को समझना; वास्तविकता को स्वीकारना।


सवितुः – सूर्य के समान तेजस्वी, उज्ज्वल और ऊर्जावान बनना।


वरेण्यं – अशुभ चिंतन को त्यागकर श्रेष्ठ चिंतन को अपनाना।


भर्गः – पापों से बचते हुए निष्पाप जीवन की ओर अग्रसर होना।


देवस्य – अशुद्ध दृष्टिकोण से बचकर शुद्ध, दिव्य विचारों को अपनाना।


धीमहि – सद्गुणों को अपने भीतर धारण करना।


धियो – विवेक का महत्त्व समझकर विवेकवान बनना।


यो नः – आत्मसंयम और परमार्थ के दिव्य मार्ग को अपनाना।


प्रचोदयात् – हे भगवान! हमारी बुद्धि को सद्मार्ग पर प्रेरित करें।


गायत्री मंत्र केवल जप नहीं—जीवन का मार्गदर्शन है। यह सिखाता है कि मन शुद्ध हो, विचार श्रेष्ठ हों, कर्म नैतिक हों और जीवन प्रकाशमय। 


सादर, 

केशव राम सिंघल 

(संकलित)