Monday, December 14, 2015

जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन - पहली बार ऐतिहासिक जलवायु समझौता


जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन - पहली बार ऐतिहासिक जलवायु समझौता


जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 30 नवंबर से 11 दिसंबर 2015 तक पेरिस (फ्रांस) में आयोजित हुआ, जिसे एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया, इस प्रकार यह सम्मेलन 12 दिसंबर को समाप्त हुआ. यह सम्मेलन इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इस सम्मेलन से इस नतीजे की उम्मीद थी कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस कम रखने का एक जलवायु परिवर्तन पर नया अंतरराष्ट्रीय समझौता सामने आयेगा जो सभी देशों के लिए लागू होगा. इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई. ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने के लिए दीर्घकालीन सहमति की जरूरत थी. संयुक्त राष्ट्र के 195 देशों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया और क़रीब 177 देशों से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में आए. जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन के मामले पर विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच हमेशा विचारों की भिन्नता और तकरार रही है, फिर भी दो सप्ताह के विचार-विमर्श के बाद शनिवार 12 दिसंबर 2015 को पर्यावरण बचाने का अन्तिम जलवायु दस्तावेज का मसौदा जारी कर दिया गया, जिसमे दुनिया में तापमान मे बढ़ोतरी की दर दो डिग्री सेल्सियस से नीचे लाने का लक्ष्य तय किया गया. इस जलवायु दस्तावेज में संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प संख्या ए/आरईएस'70/1 "हमारी दुनिया को बदलना - सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा" (Transforming our world: the 2030 Agenda for Sustainable Development) स्वीकार किया गया. यह स्वीकार किया गया कि जलवायु परिवर्तन एक तत्काल और संभावित अपरिवर्तनीय विषय है, जो मानव समाज और इस गृह (पृथ्वी) के लिए खतरा है और इसलिए व्यापक संभव सहयोग की आवश्यकता है, जिसमे सभी देश एक प्रभावी और उपयुक्त अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही से भागीदारी निभाए, ताकि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी को ते़ज किया जा सके. यह भी स्वीकार किया गया कि जलवायु परिवर्तन के समाधान में सम्मेलन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वैश्विक उत्सर्जन में कटौती की गहरी आवश्यकता है. यह माना गया कि जलवायु परिवर्तन मानव जाति के लिए एक आम चिंता का विषय है. दीघ्रकालीन लक्ष्य की दिशा में प्रगति के संबंध में सभी देशों के सामूहिक प्रयासों का जायजा लेने के लिए 2018 में एक सुविधाजनक वार्ता (dialogue) बुलाने का फैसला किया गया है. पूर्व-औद्योगिक स्तर और संबंधित वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक के ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों पर 2018 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल एक विशेष रिपोर्ट प्रदान करेगा. इस समझौते का 195 देशों ने समर्थन किया है, जिसका लक्ष्य ग्लोबल तापमान को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से दो डिग्री सेल्सियस नीचे रखने और ग्लोबल तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की कोशिश करना है. समझौते के तहत विकासशील देशों को प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर अर्थात लगभग 6.3 लाख करोड़ रुपए की मदद की जाएगी ताकि वे 2020 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सके. समझौते की पहली समीक्षा 2023 और बाद में प्रत्येक पाँच वर्ष में की जाएगी.

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा है कि 'पेरिस समझौते के परिणाम में न कोई हारा और न कोई जीता. जलवायु न्याय की जीत हुई है और हम सब दुनिया के भविष्य को हराभरा बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं." हमारे देश के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेदकर ने जलवायु परिवर्तन समझौते को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि इससे पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति साझा जिम्मेदारियोन के निर्वाह में मदद मिलेगी."

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का अन्तिम जलवायु दस्तावेज का मसौदा 12 दिसंबर 2015 को सामने आया और फ्रांस ने सभी देशों से जलवायु परिवर्तन पर पहला वैश्विक समझौता स्वीकार करने का आव्हान किया और अब सभी देशों ने इस जलवायु दस्तावेज को स्वीकार कर लिया हैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अन्तिम जलवायु दस्तावेज के मसौदे को देखने से यह प्रतीत होता है कि प्रतिबद्धताओं और महत्वाकांक्षाओं पर यह काफी कमजोर दस्तावेज है क्योंकि इसमें विकसित देशों के लिए कोई सामूहिक और व्यक्तिगत् लक्ष्य नहीं दिए गए हैं तथा वैश्विक कार्बन बजट का कोई जिक्र भी नहीं है.. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का अन्तिम जलवायु दस्तावेज का मसौदा काफी कमजोर है और आशाओं के मुताबिक नहीं है.

समझौते से 'ऐतिहासिक जिम्मेदारी' पद ('historical responsibility' phrase) हटा दिया गया है, इस प्रकार विकसित देशों को राहत दी गई है और उनके दायित्वों को कमजोर कर सरल बनाया गया है.

इस समझौते से क्या पाया ...? क्या जीत है और क्या हार है?

- समझौता संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत है. इक्विटी और आम (equity and common) जैसे शब्दों का समझौते में कई स्थानों में उल्लेख किया है और कई जगह अलग-अलग जिम्मेदारियों (differentiated responsibilities) का उल्लेख किया गया है.
- इस समझौते में जलवायु न्याय (climate justice), स्थायी जीवन शैली (sustainable lifestyle) और उपभोग (consumption) जैसे शब्दों को स्थान मिला है। लेकिन इन शब्दों का उपयोग परिचालन भागों में नहीं हैं और इसलिए इन बातों के लिए कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं पड़ती है कि इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए.
- भारत में कुछ लोगों का यह मानना है कि भारत को 2030 से पहले बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं होगी, लेकिन भारत पर 2020 और उससे आगे जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए और अधिक बोझ लेने के लिए लगातार दबाव रहेगा, विशेष रूप से जब सभी देशों की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान की अगली समीक्षा होगी.

देश की प्रमुख पर्यावरण विशेषज्ञ सुनीता नारायण कहती हैं - "On the whole, the draft Paris agreement continues to be weak and unambitious, as it does not include any meaningful targets for developed countries to reduce their emissions. It notes that climate injustice is a concern of some and it maintains that the agreement will be under the UN convention. But as it does not operationalise equity and the term carbon budget didn’t even find mention in the text. This will end up furthering climate apartheid."

विश्वं के अनेक वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने जलवायु समझौते का स्वागत किया है, पर साथ ही चेतावनी भी दी है.कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए एक विस्तृत खाका नहीं होने से समस्या होगी और लक्ष्य प्राप्त करना कठिन होगा.




जलवायु समझौते का पाठ आप http://unfccc.int/documentation/documents/advanced_search/items/6911.php?priref=600008831 लिंक पर देख् सकते हैं.


- केशव राम सिंघल
14-12-2015

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