Monday, December 18, 2023

#089 - गीता अध्ययन एक प्रयास

गीता अध्ययन एक प्रयास 


*ॐ*


*जय श्रीकृष्ण*


*गीता अध्याय 9 - ज्ञान-विज्ञान*


9/1

इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे। 

ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेअशुभात्।। 


9/2 

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्। 

प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम।। 


9/3 

अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप। 

अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युससारवर्त्मनि।। 


9/4 

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। 

मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।। 


9/5 

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योग्यमैश्वरम्। 

भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।। 


भावार्थ 


भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - 


अत्यंत गोपनीय विज्ञान सहित यह ज्ञान मैं अच्छी तरह से तुझे बतलाऊँगा, जिसे जानकर तु इस जन्म-मरण रूपी संसार से मुक्त हो जाएगा। विज्ञान सहित यह ज्ञान पूरी तरह से सभी विद्याओं और सभी गोपनीय ज्ञान का प्रधान (राजा) है। यह अत्यंत पवित्र और श्रेष्ठ है। इसका फल भी दिखता है, यह धर्म के अनुसार है, नष्ट होने वाला नहीं है और पालना करने में सरल है। हे अर्जुन ! इन धर्म की बातों पर श्रद्धा न रखने वाले व्यक्ति मुझे (ईश्वर को) प्राप्त नहीं होते हैं और इस मृत्यु संसार में वापिस आते-जाते रहते हैं। यह पूरा संसार मेरे (ईश्वर के) अव्यक्त स्वरूप (निराकार स्वरूप) से व्याप्त है। सभी प्राणी मुझ (ईश्वर) में स्थित हैं, पर मैं (ईश्वर) उनमें स्थित नहीं। वे प्राणी मुझ (ईश्वर) में स्थित नहीं हैं, मेरे ईश्वर रूपी योग को देख। सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करने वाला मेरा (ईश्वर का) स्वरूप उन प्राणियों में स्थित नहीं।  


प्रसंगवश 


ऐसा लगता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने परस्पर विरोधी बाते कहीं हैं। सार यह है कि ईश्वर सभी में व्याप्त रहते हुए भी निर्लिप्त रहते हैं। 'सम्पूर्ण प्राणी मुझ में स्थित हैं' से तात्पर्य है कि सारा जगत ईश्वर में स्थित है। 'मैं उनमें स्थित हूँ' से तात्पर्य है कि मेरी (ईश्वर की) सत्ता से उनकी सत्ता है। 


सादर, 

केशव राम सिंघल 



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