अध्यात्म और विज्ञान – चेतना का शाश्वत सत्य
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
अध्यात्म कहता है – आत्मा न तो जन्म लेता है और न ही कभी मरता है। आत्मा शाश्वत, अविनाशी और सनातन है। (गीता, अध्याय 2 – श्लोक 19, 20)
विज्ञान भी यही कहता है – ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती, वह केवल अपना रूप बदलती है।
स्पष्ट है कि अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही एक ही सत्य की ओर संकेत करते हैं। आत्मा कहें या ऊर्जा – यही तो चेतना है। यही हमारे अस्तित्व का मूल स्वरूप है।
आप अकेले नहीं हैं, मैं अकेला नहीं हूँ। हम सब इस अनंत यात्रा का हिस्सा हैं। हम केवल रूप बदलते रहते हैं, जैसे एक लहर समुद्र से कभी अलग नहीं होती, केवल अपना आकार बदलकर आगे बढ़ती रहती है।
जब आप और मैं इस भौतिक दुनिया से विदा होंगे, तब भी हम पूरी तरह समाप्त नहीं होंगे। केवल शरीर निष्क्रिय होगा, परंतु हमारे शब्द, हमारे कर्म, हमारे विचार और यहाँ तक कि हमारी आनुवंशिक जानकारी (डीएनए) – हमारी संतान, समाज और आने वाले कल में जीवित रहेंगे।
हम सब शाश्वत चेतना से निरंतर जीवित रहते हैं। हम अपने पूर्वजों का विस्तार हैं और अपनी संतान के भविष्य के बीज हैं।
ब्रह्माण्ड के लिए हम कभी समाप्त नहीं होते। हम केवल एक यात्रा पर हैं – जहाँ शरीर बदलते हैं, रिश्ते बदलते हैं, पर हमारी असली पहचान – हमारी चेतना – शाश्वत बनी रहती है।
यही विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है और यही अध्यात्म का सनातन सत्य है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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