अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का प्रयास, चाहे वे आपके विचारों से भिन्न ही क्यों ना हों .... पाठकों की टिप्पणी का स्वागत है, पर भाषा शालीन हो, इसका निवेदन है .... - केशव राम सिंघल, अजमेर, भारत.
Sunday, July 13, 2025
पौराणिक कथा - भगवान् भोलेनाथ ने किया बधिक का कल्याण
Thursday, July 10, 2025
पौराणिक कथा पुनर्लेखन - ब्राह्मण का अभिमान और मोक्ष का मार्ग
पौराणिक कथा पुनर्लेखन
ब्राह्मण का अभिमान और मोक्ष का मार्ग
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
प्राचीन समय की बात है। एक ब्राह्मण तप और मोक्ष की लालसा में अपने वृद्ध माता-पिता को अकेला छोड़कर वन चला गया। वहाँ वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तपस्या करने लगा। कई दिन बीत गए। एक दिन उसी वृक्ष पर बैठा एक पक्षी, अनजाने में ब्राह्मण के ऊपर बीट कर गया। ब्राह्मण को बहुत क्रोध आया। उसने गुस्से से पक्षी की ओर देखा — उसी क्षण वह पक्षी जलकर भूमि पर गिर पड़ा।
यह देखकर ब्राह्मण को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया — "मेरे तप में इतनी शक्ति है!"
कुछ दिन बाद वह एक गाँव में भिक्षा माँगने पहुँचा। अपने से बड़ों की सेवा-सुश्रुवा में व्यस्त एक गृहिणी ने जब तुरंत भिक्षा नहीं दी, तो ब्राह्मण ने उसी क्रोध से उसे देखने का प्रयास किया। परंतु गृहिणी ने शांत स्वर में कहा, "महाराज, मैं वह पक्षी नहीं हूँ जो आपके क्रोध से भस्म हो जाऊँ।"
यह सुनकर ब्राह्मण चौंका और बोला, "हे देवी! आपको यह बात कैसे ज्ञात हुई?"
गृहिणी ने उत्तर दिया, "महाराज, कृपया भिक्षा ग्रहण करें। मेरे पास विवाद का समय नहीं है। यदि आप जानना चाहें, तो गाँव के बाहर रहने वाले चाण्डाल के पास जाइए।"
आश्चर्यचकित ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। चाण्डाल ने उसका आदर किया और कहा, "मुझे मालूम है कि आपको यहाँ क्यों भेजा गया है। परंतु मैं इस समय व्यस्त हूँ। आप तुलाधार नामक वैश्य के पास जाइए, वह आपको मार्ग बताएगा।"
ब्राह्मण तुलाधार वैश्य के पास पहुँचा। वह व्यापार में व्यस्त था, परंतु ब्राह्मण को देखकर मुस्कुराया और बोला, "आपको सत्य जानने की इच्छा है तो अद्रोहक ऋषि के पास जाइए। वही आपको सच्चा मार्ग बताएँगे।"
ब्राह्मण जब अद्रोहक ऋषि के पास पहुँचा, तो उन्होंने शांत भाव से कहा, "महाराज, आपका धर्म अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करना था। आपने उन्हें त्यागकर तपस्या की, पर यह मोक्ष का मार्ग नहीं है। तपस्या अहंकार के साथ नहीं की जाती।"
उन्होंने आगे कहा, "मन, वचन और कर्म से माता-पिता की सेवा ही आपके लिए सच्चा धर्म है। जब आप अपना कर्तव्य पूरी श्रद्धा से निभाएँगे, जब आप अपने अभिमान को त्यागेंगे, तब ही मोक्ष की दिशा खुलेगी। ईश्वर की सच्ची स्तुति वहीं होती है जहाँ धर्म का पालन हो।"
ब्राह्मण को आत्मबोध हुआ। उसने अपना अहंकार त्यागा और लौटकर अपने माता-पिता की सेवा में लग गया।
मेरी सीख
कर्तव्यपालन और विनम्रता ही मोक्ष का मार्ग है।
सादर,
केशव राम सिंघल
Wednesday, July 9, 2025
क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ और ब्रह्मानुभूति — आत्मसाधना की तत्वदर्शिता

Friday, July 4, 2025
महाभारत के प्रमुख पात्र अर्जुन – एकाग्रता, वीरता और आत्मसंघर्ष का प्रतीक
महाभारत के प्रमुख पात्र अर्जुन – एकाग्रता, वीरता और आत्मसंघर्ष का प्रतीक
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प्रतीकात्मक चित्र साभार OpenAI द्वारा निर्मित
महाभारत के वीरों में अर्जुन का नाम सबसे ऊपर आता,
श्रेष्ठ धनुर्धर, संवेदनशील योद्धा, जो सदा सत्य अपनाता।
अर्जुन – धर्मनिष्ठ और आत्मसंयमी योद्धा,
हर परिस्थिति में धर्म, विवेक और संयम से डटा रहा,
सच्चा वीर वही – जो बाहरी संग्राम के साथ भीतर मन का युद्ध भी लड़ा।
वंश, शिक्षा और गुरुकुल जीवन
पांडवों में था तीसरा भाई, जिनकी शिक्षा थी विलक्षण,
महाराज पांडु और रानी कुंती के इस पुत्र में था गुणों का सम्मिलन।
बचपन से ही नीति, धर्म और युद्धकला में था अग्रणी,
गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें माना शिष्यों में श्रेष्ठतम ज्ञानी।
एकाग्रता की मिसाल
चिड़िया की आँख का प्रसंग उनकी एकाग्रता का प्रमाण बना,
जो लक्ष्य पर केंद्रित रहे, वही सच्चे परिणाम को है पाता।
पराक्रम और कीर्तिगाथा
स्वयंवर में कठिन लक्ष्य भेदा, द्रौपदी से विवाह रचाया,
खांडव वन दहन, इंद्र से दिव्यास्त्र, दिग्विजय से यश कमाया।
भगवान शिव से मिला पाशुपतास्त्र, जो था अद्भुत वरदान,
अर्जुन के शौर्य की गाथा गूंजे हर युग में हर इंसान।
श्रीकृष्ण से मित्रता और गीता का उपदेश
श्रीकृष्ण से थी प्रगाढ़ मित्रता – अनुपम और अपार,
उन्हीं से मिला गीता का दर्शन ज्ञान – अमूल्य विचार।
सारथी, सखा, मार्गदर्शक – हर मोड़ पर रहे श्रीकृष्ण सच्चे,
धर्म और कर्म का मार्ग दिखाया, जब अर्जुन रहे द्वन्द में उलझे।
महाभारत युद्ध पूर्व जब देखे बंधु-बांधव रणभूमि में खड़े,
शस्त्र त्याग कर बैठ गया वह – मोह, करुणा और धर्मसंकट से घिरे।
तब श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश सुनाया –
"कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
"धर्म के लिए संघर्ष ही तुम्हारा सच्चा कर्तव्य है – यह न भूलो।"
अर्जुन से प्रेरणाएँ
* एकाग्रता से लक्ष्य पर अडिग रहो।
* श्रेष्ठ बनो, पर अहंकार से सदा दूर रहो।
* आत्ममंथन करो, निर्णय विवेक से लो।
* गुरु के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखो।
* अनुशासन और अभ्यास को जीवन का अंग बनाओ।
* संघर्षों में भी धैर्य और संतुलन न खोओ।
अर्जुन से जीवन की शिक्षाएँ
* कठिन परिश्रम और निरंतर अभ्यास से ही सफलता मिलती है।
* भ्रम की स्थिति में ज्ञान, विवेक और विश्वास से मार्ग चुनें।
* सच्चे मित्र और मार्गदर्शक की बातों को ध्यान से सुनें।
* आत्मविश्वास और मन की स्थिरता ही सबसे बड़ा शस्त्र है।
सादर,
केशव राम सिंघल