*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*
*गीता अध्याय 5 - कर्म संन्यास योग - श्लोक 16 से 18*
5/16
*ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः !*
*तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्!!*
5/17
*तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: !*
*गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: !!*
5/18
*विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि !*
*शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः !!*
*भावार्थ*
(श्रीकृष्ण अर्जुन से)
पर जिसने अपने ज्ञान (आत्मज्ञान) से उस अज्ञान का नाश कर दिया है, उनका वह् ज्ञान सूर्य के समान परमतत्व परमात्मा को प्रकाशित कर देता है. (5/16)
जिसका मन और बुद्धि परमात्मा में स्थित है और जिनकी निष्ठा परमतत्व परमात्मा में है, ऐसे व्यक्ति ज्ञान के द्वारा पापरहित होकर परमगति को प्राप्त होते हैं. (5/17)
ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण और चांडाल, गाय, हाथी और कुत्ते को भी समान दृष्टि से देखते हैं. (5/18)
*प्रसंगवश*
जब अज्ञान समाप्त होता है तो अंधकार मिटता है. एक बार ज्ञान हो गया तो अज्ञान सर्वदा के लिए मिट जाता है. अज्ञान का नाश विवेक से होता है.
परमगति = जीवन-मरण (पुनर्जन्म) के बंधन से मुक्त हो जाना
सादर,
केशव राम सिंघल
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