गायत्री महामंत्र
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
भावार्थ - हम उस सृष्टिकर्ता और प्रकाशमान परमेश्वर के तेज का ध्यान करते हैं जो पृथ्वी, भुवर्लोक और स्वर्लोक में विद्यमान है। परमेश्वर का तेज हमारी बुद्धि को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। हम उस परमेश्वर का ध्यान करें जो जीवनदाता है, जो दु:खों का नाश करने वाला है, जो सुखस्वरूप है, जो श्रेष्ठ है, जो तेजस्वी है, जो पापों का नाश करने वाला है और जो परमेश्वर है। वह परमेश्वर हमारी बुद्धि को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे।
गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के बराबर मानी जाती है। गायत्री मंत्र की रचना में बाल्मीकि रामायण के श्लोकों के पहले अक्षरों का इस्तेमाल किया गया है। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं। वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं। रामायण के हर 1,000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर को जोड़ने से गायत्री मंत्र बनता है। गायत्री मंत्र को महामंत्र कहा जाता है। यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है। गायत्री मंत्र को सबसे पहले दुनिया की पहली पुस्तक ऋग्वेद में उल्लेखित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि नियमित रूप से 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करने से बुद्धि प्रखर होती है और किसी भी विषय को लंबे समय तक याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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