गीता अध्ययन एक प्रयास
*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*
*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*
8/19
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।
रात्र्यागमेअवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे।।
8/20
परस्तस्मासत्तु भावोअन्योअव्यक्तोअव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति।।
8/21
अव्यक्तोअक्षर इत्युक्तास्तमाहुः मरमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
भावार्थ
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
हे पार्थ ! ये सभी प्राणी बार-बार प्रकृति के अधीन उत्पन्न होते हैं, जो ब्रह्मा के दिन के समय पैदा होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि में लीन हो जाते हैं। परन्तु उस ब्रह्माजी के सूक्ष्म शरीर (अव्यक्त) से अन्य सनातन दूसरा भावरूप जो अव्यक्त है, वह सभी प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता है। उसी (ईश्वर) को अव्यक्त और अक्षर (नष्ट न होने वाला) कहा गया है तथा उसे परमगति कहा गया है, जिसको प्राप्त होने पर प्राणी फिर संसार में वापिस नहीं आते हैं, वही मेरा परमधाम है।
प्रसंगवश
हम सभी प्राणी अनादिकाल से जन्म-मरण के चक्र में बार-बार पैदा होते रहते हैं और मरते रहते हैं और यह चक्र तब तक चलता है जब तक हमें परमगति नहीं मिल जाती।
दूसरा भावरूप जो अव्यक्त है, वही तो ईश्वर है, सदा रहने वाला, कभी नष्ट न होने वाला।
सादर,
केशव राम सिंघल
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