गीता अध्ययन एक प्रयास
*ॐ*
*जय श्रीकृष्ण*
*गीता अध्याय 8 - अक्षरब्रह्मयोग*
8/22
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया।
यस्यान्तः स्यानि भूतानि येन सर्वमिदं तत्म।।
8/23
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ।।
8/24
अग्निज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छान्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।
8/25
धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।
8/26
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः।।
8/27
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन।।
8/28
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।
भावार्थ
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -
हे पार्थ ! जिस परमात्मा (ईश्वर) के अंतर्गत सभी प्राणी हैं और जिससे यह पूरा संसार व्याप्त है, वह परमपुरुष (ईश्वर) तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है। हे भारतवंशियों में श्रेष्ठ (अर्जुन) ! परन्तु जिस काल में शरीर त्याग कर गए व्यक्ति (योगी) वापिस लौटकर नहीं आते और जिस काल में वापिस लौटकर आते हैं, उन दोनों कालों के बारे में मैं तुम्हें बताऊँगा। जिस मार्ग में प्रकाशस्वरूप अग्नि के अधिपति देवता हैं, दिन के अधिपति देवता हैं और छह माह उत्तरायण के अधिपति देवता हैं, उस मार्ग में (दौरान) शरीर छोड़कर गए ब्रह्मवेत्ता योगीजन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। जिस मार्ग में धूम के अधिपति देवता हैं, रात्रि के अधिपति देवता हैं, कृष्ण पक्ष के अधिपति देवता हैं और कृष्ण पक्ष के छह माह के दक्षिणायन अधिपति देवता हैं, उस मार्ग में (दौरान) जो शरीर छोड़ते हाँ, वे चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त कर लौट आता है अर्थात् उसका पुनर्जन्म हो जाता है। क्योंकि ये दोनों गतियाँ शुक्ल और कृष्ण अनादिकाल से इस संसार में होती आई है। एक गति में जाने वाले को लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गति में जाने वाले को वापिस लौटना पड़ता है। हे पार्थ !इन दोनों मार्गों को जानने वाला कोई भी व्यक्ति मोहित नहीं होता, अतः हे अर्जुन ! तू हर समय समता में रह। योगी इन सबको जानकार वेद, यज्ञ, तप और दान में जो पुण्यफल हैं, उन सभी पुन्यफलों को प्राप्त करता है और आदि परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।
प्रसंगवश
शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष पंद्रह-पंद्रह दिनों का होता है। उत्तरायण और दक्षिणायन छह-छह माह की अवधि का होता है। जब सूर्य भगवान उत्तर की ओर चलते हैं, उसे उत्तरायण कहते हैं। उत्तरायण में दिन का समय बढ़ता है। उत्तरायण मकर संक्रांति से प्रारम्भ होता है। दक्षिणायन 21/22 जून से प्रारम्भ होता है।
सादर,
केशव राम सिंघल
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